Thursday, November 12, 2009

मायूसी ही मायूसी !

आपने शायद यह सुना होगा कि हमारे देश में, हिंदू धर्म में लाश के क्रिया-कर्म में कुर्सी का भी पिण्ड-दान किया जाता है! और इसीलिये हमारे देश में लाशों की राजनीति भी एक चोखा धंधा मानी जाती है! यह देश पिछले काफी समय से रातो को ठीक से सो नही पा रहा, कारण, जिसे देखो बस शिकायत लिए ही घूम रहा है ! एक तरफ़ पत्थर अपना रोना रोते दिखाई पड़ते है कि इस देश के भाई-भतीजे उल्टे सीधे काम तो ख़ुद करते है और प्रतिपक्ष पर प्रहार करने की प्रक्रिया में घर से बेघर उन्हें कर देते है ! दूसरी तरफ़ लकड़ी अपना ही रोना रोये जा रही है कि जनम-जले मरते अपने कर्मो और करतूतों से है और चिता में साथ में जलने को उन्हें भी झोंक दिया जाता है ! जमीन का वह वीरान टुकडा भी किसी नए जनाजे को अपनी तरफ आता देख मायूस हो जाता है की अब इस नए मेहमान को कहाँ पर दो गज जगह मुहैया कराऊ ? भागीरथ को इसी बात का अफसोस है कि उसने नगर निगम में छ: महीने पहले कनेक्शन की अर्जी वाकायदा शुल्क सहित जमा की थी लेकिन अभी तक उसका नल नही लगा ! अब भला वह अपने पुरखो को श्रर्दांजलि दे भी तो कैसे ? बिना किसी मेहनत के कुर्सी पाया मौन सिंह मौन है ! सफेद चटकीले किस्म के कुरता सलवार में बस, एक ही किस्म का प्राणी इन हालत से काफ़ी खुस नज़र आ रहा है ! जब भी किसी सफेद लिबास में लिपटे शख्स को शमशान की ओर जाते हुए देखता है तो बड़ा खुस होता है, और इसी अधेड़बुन में है कि वहाँ से भी कुछ वोट मिल जाते तो ??!! ठण्ड भी बढ़ने लगी है, सुनशान रातो को अगर किसी फुटपाथ अथवा पेड़ के नीचे से किसी दुखियारे के रोने की आवाज आ पड़ती है तो घर का पालतू कुता भी घर के गेट से जोर-जोर से भौंकता है, मानो उस आत्मा को इन शब्दों में सांत्वना दे रहा हो कि;

नादान तू इस कदर क्यों रोता है,
यहाँ वही पाता भी है जो खोता है,
दस्तूर यूँ तो मैं भी न समझ पाया,
मगर हर रात के बाद सबेरा होता है !!

और चलते-चलते;
चिठ्ठा जगत पर आजकल कुछ जाने माने साहित्यकारों जैसे अवधिया साहब, ललित साहब, वत्स साहब, मैडम संगीता पुरी जी, बाली साहब इत्यादि लेखको की कलम भूत-प्रेत से सम्बंधित काफी दहशत पैदा कर रही है तो मैंने सोचा की क्यों न मैं भी अपना थोडा सा कंट्रीब्युसन दे दू ! तो लीजिये प्रस्तुत है ; एक बंगाली अधेड़ उम्र दम्पति बद्रीनाथ तीर्थ यात्रा पर आए थे ! उस ज़माने में गाड़ी ऋषिकेश से सिर्फ़ कीर्तिनगर तक ही जाती थी !अलकनंदा पर कीर्तिनगर- श्रीनगर का गाड़ी पुल नही था ! अतः यात्री वहाँ से आगे का २०० किलोमीटर का सफ़र पैदल ही तय करते थे ! बंगाली दम्पति यात्रा से लौटते वक्त मुख्य रास्ते को छोड़ दूसरे सौर्ट-कट रास्ते पर चल पड़े ! एक खड़ी पहाडी चड़ने के बाद ऊपर धार में से गुजरते वक्त किन्ही लुटेरो ने बंगाली दंपत्ति की हत्या कर दी और दोनों की लाश एक बांज के पेड से लटका दी ! तब से बताते है कि उस ख़ास तिथि / दिन पर, जिस दिन उनकी हत्या हुई थी, कोई अगर उस सुनशान मार्ग से गुज़रता है तो वह स्वत: ही उस ख़ास पेड पर फांसी लगा लेता है/ था (करीब बतीस साल पहले मैंने आख़री घटना के बारे में सुना था), यूं कहिये कि अगले दिन उसकी लाश उस बांज के पीड पर लटकती हुई मिलती है और वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो ३२ साल पहले उस पेड़ से लटका मिला था, इस तरह का पांचवा व्यक्ति था, ऐंसा गाव वाले और बड़े बुजुर्ग बताते थे !

14 comments:

  1. गोदियाल साब-हम तो मजाक-मजाक खेल रहे थे, वैसे भी हमको भुतों से बहुत डर लगता है-रामसे ब्रदर्स ने तो जीना ही हराम कर दिया था और आप तो सच मे ही बच्चो को डराने लग गये,
    ये ठीक नही है-छोटा बच्चा जान के हमको......

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  2. नादान तू इस कदर क्यों रोता है,
    यहाँ वही पाता भी है जो खोता है,
    दस्तूर यूँ तो मैं भी न समझ पाया,
    मगर हर रात के बाद सबेरा होता है !!

    bahut sahi kaha aapne..... ummeed pe hi duniya kaayam hai........


    Godiyal sahab........ mujhe bhi bhooton se bahut dar lagta hai....

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  3. AAPNE TO DARA DIYA SIR .... HAMARE DUBAI MEIN NAHI AATE YE BHOOT PRET.... SARKAAR INKO VISA NAHI DETI ...

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  4. हमने तो भूतप्रेत की किसी घटना को इतना भयावह नहीं दिखाया था .. आप तो सचमुच सबको डराने लगे .. वैसे आप उस जगह और उस तिथि के बारे में ललित शर्माजी और प्रकाश गोविंद जैसे हिम्‍मतवर लोगों को पूरी जानकारी दे दें .. उन लोगों ने ऐसी ऐसी जगहों पर एक रात बिताने के लिए लिस्‍ट बना रखा है .. आखिर सत्‍य हमारे सामने भी तो आना चाहिए!!

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  5. गोदियाल जी,

    छोड़िये मायूसिओं को। हम तो सफेद लिबास में लिपट कर जाने तक हर मायूसी को खदेड़ते रहेंगे।

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  6. आप ने सोच में डाल दिया।
    यही कहूँगा - संकटग्रस्त करने के लिए धन्यवाद।
    कुछ भूला याद आ गया।

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  7. " भागीरथ को इसी बात का अफसोस है कि उसने नगर निगम में छ: महीने पहले कनेक्शन की अर्जी वाकायदा शुल्क सहित जमा की थी लेकिन अभी तक उसका नल नही लगा ! "
    भागिरथ को मायूसी हाथ नहीं लगेगी तो और क्या होग? उसे आज के ज़माने की तकनीक ही नहीं आती ना- हाथ गरम करना पडता है...कुछ वज़न रखना पडता है :-)

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  8. गोदियाल साहब,
    आपने तो डराने में कसर नहीं छोड़ी, लेकिन हमने भी रास्ता निकाल ही लिया है:
    भूतों से दोस्ती की है
    बेखौफ़ ज़िन्दगी जी है
    भई, आपकी पोस्ट बहुत पसंद आई.
    हमारी तरफ़ भी आइये, यक़ीन कीजिए आपको डरायेंगे नहीं.
    महावीर शर्मा

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  9. आपने भी आहूती डाल ही दी. :)

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  10. अजी क्यो डरा रहे है आप.... लेकिन ऎसे भुत तो होने चाहिये भारत की हर सीमा पर.... जो आये खुद ही लटक जाये कोई झंझट ही ना हो

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  11. First half post ke liye: aisa hi hota hai!!!
    second half post ke liye: aisa bhi hota hai kya??????

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  12. वाकई विचारणीय बात कही आपने.

    रामराम.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।