Monday, November 30, 2009

सरकार द्वारा प्रायोजित दीखती है मंहगाई !

इसमे कोई सन्देह नही कि आज दुनिया भर मे छाई इस मंदी और मंहगाई ने सारे ही अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को उलट-फेर कर रख दिया है । अर्थशास्त्रीयों द्वारा दी गई परिभाषाओं के मुताविक आर्थिक मंदी के दौर मे लोगो की क्रय करने की क्षमता कमजोर पड्ती है , जिससे उचित ग्राहक न मिलने की वजह से वस्तुऒ और सेवाऒ के दामों मे गिरावट आती है। लेकिन आज हकीकत मे तो स्थित ठीक इसके विपरीत दीखती है, आर्थिक मंदी भी है और मह्गाई भी, यानि सब उलटा-पुल्टा। जहां एक ओर इसके लिये तेजी से बढती जनसंख्या और लोगो के जीवन स्तर मे सुधार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, वही दूसरी ओर इसका एक प्रमुख कारण है, जमाखोरी और असंगत और अनुचित वितरण प्रणाली। मगर इन सबसे ऊपर है सरकारों का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार, और इसे रोकने के लिये इच्छा शक्ति का अभाव ! दिखावे के लिये भले ही हमारी सरकार, महंगाई के सम्बंध मे घडियाली आंसू बहा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि सरकार इस सम्बंध मे कतई गम्भीर नही ! इसे एक उदाहरण से इस तरह समझा जा सकता है कि अन्य सालों के मुकाबले इस साल भी टमाटर के उत्पादन मे कोई उल्लेख्नीय गिरावट नही आई, बावजूद इसके पिछले सालों के मुकाबले इस साल टमाटर के दामों मे छह गुना से अधिक की बढोतरी हुई है, आपको शायद याद हो कि गत वर्षो मे इस नवम्बर-दिसम्बर के सीजन मे टमाटर पांच और दस रुपये प्रति कीलो की दर पर बिकता था, जबकि आज यह तीस से साठ रुपये प्रति कीलो की दर पर मिल रहा है! इसके पीछे सरकार की एक मंशा यह भी हो सकती है कि वर्तमान ग्लोबल स्थिति की आड मे लोगो को इस मह्गाई मे ही उलझाकर रखा जाये, ताकि ज्वलन्त मुद्दो से जनता का ध्यान हटाया रखा जा सके !







ग्राह्कों को चूना लगाती सरकारी फोन कम्पनियां !
बडे-बडे दावे, ग्राहकों को लुभाने के बडे-बडे वादे । पचास पैसे मे लोकल कौल,एक रुपये से डेड रुपये प्रति मिनट मे एस टी डी कौल, मगर सच्चाई क्या है, आइये आज हुए एक तजुर्बे से बताता हूं ! य़ों तो इन छोटी-छोटी बातों पर गौर फरमाने का वक्त ही नहीं मिलता, मगर जब गौर फरमाया तो लगा कि स्थिति भयावह है, हर कोई यहां लूट-खसौट मे व्यस्त है, क्या सरकारी क्या निजी। मेरे पास घर पर तीन मोबाईल फोन है, जिनमे से दो एयरटेल के सिम से सुसज्जित है, जबकि एक मे एम टी एन एल का कनेक्शन है ! मेरा एक नजदीकी रविवार सुबह ठीक ग्यारह बजे मुझे चण्डीगढ से फोन करता है, लेकिन दूसरे फोन पर व्यस्त होने के कारण मैं उसे उठा नही पाता ! दूसरे फोन पर बातचीत खत्म होने के बाद जैसे ही मै देखता हूं कि उस फोन पर चण्डीगढ से फोन था, मैं एम टी एन एल वाले मोबाईल फोन से उसे चन्डीगढ फोन मिलाता हूं ! उसके मोबाइल पर बेल जाने का इन्तजार कर ही रहा था कि उसी का मेरे दूसरे एयरटेल वाले मोबाईल पर फिर से फोन आ गया। मैने एम टी एन एल के फोन को डिसकनैक्ट किया और एयरटेल वाले फोन पर उससे बाते की ! कुछ देर बाद जब बात खत्म हुई और मैने फोन डिसकनैक्ट किया और मेरी नजर दूसरे हाथ मे पकडे एम टी एन एल वाले फोने के स्क्रीन पर पडी तो मै दंग रह गया, उसमे आये उस मैसेज को देखकर, जिसमे लिखा था कि आपके प्रीपेड बैलेंस मे से फोन कौल के तीन रुपये काटे गये है। मैने एम टी एन एल वाले फोने से वही नम्बर तो मिलाया था जिस नम्बर से उस नजदीकी रिश्तेदार ने खुद मेरे दूसरे मोबाइल पर फोने किया था, फिर तीन रुपये किस बात के ? इस बाबत कस्ट्मर केयर मे फोन मिलाने की कोशिश की, मगर सब नदारद ! बस यही कह सकता हूं कि जागो ग्राहक, जागो !!



14 comments:

  1. सही बात तो यह है कि आज व्यापार लूट का पर्याय बन चुका है व्यापारी लुटेरे बन चुके हैं और सरकारें इन लुटेरों के सहयोगी।

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  2. भईया मुझे तो लगता है कि सरकार से बडा चोर कोई हो ही नही सकता।

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  3. आज मध्यम वर्ग भी उच्च और निम्न दो भागों मे बंट चुका है, अब मरण भी इस निम्न मध्यम वर्ग का ही है। इसका कोई मां बाप नही है। मंहगाई बढाकर ये अपनी जेबें ही भर रहे हैं, आपका कहना सही है। आभार

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  4. सही विश्लेषण,और कोई पार्टी इसे मुद्दा नही बना रही है क्यों की जिसे फायदा हो रहा है उन्हीं से चंदा लेना है

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  5. जागरूकता के साथ साथ उचित क़ानून का ना होना कुछ हद तक इसके लिए ज़िम्मेवार है ...... जहाँ तक टमाटर की बात है .... सरकार नाम की कोई चीज़ हो तो वो समझे भी .... वो तो बस अपनी गद्दी संभालने में लगे रहते हैं ..... देश और महंगाई की किसी को चिंता नही .....

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  6. दरअसल, हमें अनिश्चित चीजों की आदत डाल लेनी चाहिए ताकि कुछ भी अनिश्चित घटने पर यूं रोना-पछताना न पड़े।

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  7. गोदियाल जी.... राम .... राम....

    आपने बिलकुल सही विश्लेषण किया है..... यह महंगाई वगैरह सब प्रायोजित है...... ऐसे ही मेरा मोबाइल बिल इन लोगों ने बिना मतलब में ७००० का भेज दिया था...... और बाद में कहते हैं कि settle कर लो......और जब settle किया तो १२०० पे settle हुआ....

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  8. सच्चाई है कि हम के कारण अनगिनत संकटों में घिर गये हैं। अच्छी रचना। बधाई।

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  9. सच्चाई है कि हम मंहगाई के कारण अनगिनत संकटों में घिर गये हैं। अच्छी रचना। बधाई।

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  10. किसी ने प्रायोजित की हो या न, पर जनता तो उसकी मार सह ही रही है ।

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  11. बिल्कुल सही कहा आपने. पर छुटकारे का कोई उपाय नही दिखता.

    रामराम.

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  12. सब के सब व्यापारी हो गये है.

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  13. खरी खरी बात कही है लिखी है...सच्ची सच्ची...बातें...
    नीरज

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  14. मुझे नहीं लगता कि बाजार की ताकतों पर अब सरकार का कोई बस रह गया है...जब तक वायदा बाजार पर लगाम नहीं लगेगी..यह मंहगाई और तिस पर से भी गरीब से दर गरीब होते जा रहे किसानों का कोई इलाज नहीं हो पायेगा.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।