१;
मोहल्ले के कूड़ेदान के बाहर
वो जो आज तुमने देखा था ,
वह मेरी शराफत का चोला था,
जिसे मैने कल ही उतार फेंका था। ,
२;
प्रेम भी
अब नही बचा
आडम्बर के
परिवेश से !
कभी
प्रेम सच्चा होता था,
चाहे वह इन्सान से हो,
या फिर देश से !!
मगर आज हर चीज को
’स्युडोइज्म’ (छद्मता) का
ऐसा बुखार चडा है !
इंसानी वजूद
कठपुतली बन गया है
और सियासी धर्म,
राष्ट्र-धर्म से बडा है !!
सटीक।सब कुछ दिया आपने साफ़-साफ़ बहुत ही कम शब्दों में।
ReplyDeleteशराफत का चोला था,
ReplyDeleteजिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका !!
hum sub ki jindigi main ek pal eisa jaroor aata hai.
बहुत खूब . बढ़िया लगा , हकीकत को बयान करता हुआ
ReplyDeleteशराफत और प्रेम को सामयकि टच देते हुए व्यक्त किया है, पढकर अच्छा लगा।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वो मेरी
ReplyDeleteशराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका !!
कमाल की रचना...कितना सच और अच्छा लिखते हैं आप...
नीरज
प्रेम के मायने वो बन गये
ReplyDeleteजो कुछ कम-संख्यक
आज
इस देश से कर रहे,
और
उन कम-संख्यको से
हमारे धर्म-निरपेक्ष नेता !!
satik likha aapne..
बहुत खूब!
ReplyDeleteवो मेरी
ReplyDeleteशराफत का चोला था,
जिसे मैने कल रात,
बस यूं ही ….
खुन्दक मे,
उतार फेंका ...
BAHOOT KHOOB ... SAARTHAK RACHNA ... BAS SACH KEVAL SACH BAYAAN KARTI HAI AAPKI RACHNA ...