आखिरकार अंकल सैम ने अपनी वह असलियत वर्तमान चीन यात्रा के दौरान प्रकट कर ही दी, जिसकी आशंका कुछ तबको मे तब जताई गई थी, जब पिछ्ले वर्ष वे अमरीकी राष्ट्रपति बनने के कगार पर खडे थे। यह जान क्षोभ हुआ कि अपने यह अंकल सैम भी बिना रीढ के ही निकले। हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और, वाला मुहावरा पूरी तरह इन पर चरित्रार्थ होता है। उस वक्त यह बात भी दबी जुबान से जोर-शोर से उठी थी कि एक अश्वेत पृष्ठ भूमि के अंकल सैम क्या वह निष्पक्षता अपने कार्यकाल के दौरान दिखा पायेंगे, जिसकी अपेक्षा लोगो को भारत और अमेरिका के बीच तथाकथित मजबूत होते रिश्तों से एक अमेरिकी राष्ट्रपति से थी, और जिस तरह का भारत प्रेम का नाटक अंकल ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान किया था ? अपनी चीन यात्रा के दौरान अंकल सैम ने हु जिन्ताओ के समक्ष जिस तरह गिरगिट की तरह रंग बद्ला और जो संयुक्त बयान जारी किया, उसकी भारत को आगे बढकर भरसक तरीके से कड़ी निन्दा करनी चाहिये। आपको याद होगा कि ये वही जनाव है जिन्होने २००८ मे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश को यहां तक सलाह दे डाली थी, कि अमेरिका को तिब्बत के मुद्दे पर बीजींग औलम्पिक का बहिष्कार करना चाहिये, और आज जब अपनी बारी आई तो यही अंकल सैम, चीन के सामने भला आदमी बनकर, इस दुनिया के एक पुलिस कमांडेंट की हैसियत से तिब्बत चीन को देकर आ गये।
उनके इस चीन दौरे से जो कुछ बाते स्पष्ट हो गई, उन्हें हम भारतियों को अब भली भांति समझ लेना चाहिये । पहली बात यह कि अमेरिका अपने और सिर्फ़ अपने हितों की खातिर किसी भी गहराई तक जा सकता है। दूसरा यह कि हाल के इस रहस्योद्घाटन के वावजूद भी कि चीन ने पाकिस्तान को परमाणु युरेनियम सप्लाई किया था, और किस तरह चीन भारत के अन्दुरूनी मामलों मे दखल दे रहा है, अंकल सैम द्वारा ड्रैगन के साथ दिया गया यह संयुक्त बयान कि चीन भारत और पाकिस्तान के मामले मे ठुलभैये की भूमिका अदा करेगा, हमारे देश के कमजोर नेत्रत्व और हमारी कमजोर विदेश नीति की ओर एक बार फिर से इशारा कर रहा है। एक और जो मह्त्त्वपूर्ण बात और सामने आई, वह यह कि अपने यह अंकल सैम भी हमारे नेताओं की ही भांति बिना रीढ की हड्डी के वो थाली के वैगन है जो जिधर गुरुत्वआकर्षण बल ज्यादा हो , उधर ही लुडक जाते है। दूसरे शब्दों मे, बिन पैंदे के लोटे है, इधर भी भले और उधर भी भले, अपना इनका कोई दमदार नजरिया नही, जो अपनी किसी बात पर अडिग रह सके। अभी जब हमारे प्रधान मन्त्री जी अमेरिका जाकर इन्हे मिलेंगे तो यह अंकल सैम दो चार चिकनी-चुपडी बाते उनके साथ भी करेंगे, क्योंकि सैम को मालूम है कि ये लोग इतने मे ही खुश हो जाते है, और इनका सेक्युलर मीडिया इन्ही कुछ चिकनी चुपड़ी बातों मे मक्खन-जैम लगाकर स्वादिष्ट बना देगा ! लेकिन हमे यह याद रखना होगा कि डेविड हेडली ने एक अमेरिकी नागरिक के नाते क्रिश्चियन बनकर यहां जो भी गुल खिलाये, उसके पीछे उसकी दाउद गिलानी वाली अतीत की पृष्ठ भूमि भी है। और लाख कोशिश हम कर ले, अमेरिका शायद ही कभी भारत का एक सच्चा मित्र बन पायेगा । काश ! हमारे नेता भी इस वक्त, अमेरिका को कोई दमदार सन्देश दे पाते । रही बात ड्रैगन की तो दुनिया जानती है कि जो झुकाव आज अमेरिका का चीन के प्रति है, बिलकुल वही झुकाव अस्सी के दशक में जापान के प्रति था और उस जमाने में जापानी धडा-धड़ अमेरिका में संपत्ति खरीद रहे थे । ठीक वही स्थित आज चीन की भी है और यकीन मानिए कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में उठा यह ड्रैगन रूपी पानी का बुलबुला भी ज्यादा समय तक नहीं टिक पायेगा। हमें जरुरत है तो बस अपना पक्ष और राष्ट्र का गौरव, अन्तराष्ट्रीय विरादरी के समक्ष मजबूती से प्रस्तुत करने की।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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nice
ReplyDeletekamjor ki help koi nahi karta ... bhai... apni help khud hi karni padti hai.... dunia hamesh strong ka hi saath deti hai...
ReplyDeleteये बात तो हम और आपा समझ जाते है, लेकिन केन्द्र में बैठी सरकार जो है न वह इनकी पिछलग्गु है, तो समझे कैसे।
ReplyDeleteकल तक यही ओबामा थे जो तिब्बतियों के मानवाधिकारों को लेकर बीजिंग ओलंपिक्स का बहिष्कार करने के लिए जॉर्ज बुश को सलाह दे रहे थे...आज वही ओबामा दलाई लामा को मिलने के लिए वक्त तक नहीं देते...अब उन्हें भारत-पाकिस्तान विवाद सुलझाने के लिए चीन सबसे बड़ा कोतवाल नज़र आने लगा है...वो कोतवाल जो खुद सबसे बड़ा चोर है...
ReplyDeleteजय हिंद...
बहुत अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteabhi aa kar poora padhta hoon... jaise hi aaya ki ek fone aa gaya hai.... thodi lambi baat chalegi....
ReplyDeletebas abhi aaya....
yeh to inka shuggle hai hi..... kahte kuch hain aur karte kuch.....
ReplyDeleteaur yeh bhi dekhiyega...ki congress chup hi rahegi....
हाथी के दाँत-
ReplyDeleteखाने के और!
दिखाने के और!!
अब तो अंतर्राष्ट्रीय पहलू पर सोचना ही पड़ेगा.....समझ में नहीं आता अंकल सैम क्यों ऐसा बोल गए....हालात तो ऐसे न थे की उन्हें इतना दब के बोलना था.....हमें खुद ही पहल करनी होगी......अपनी स्थिति को मजबूत करने में....जो खुद समर्थ है उसी के साथ सब हैं.
ReplyDeleteअरे वो अंकल सैम हैं, सबको सबकुछ कहने की ऐंठ रखते हैं। मुद्दा अच्छा उठाया है।
ReplyDeleteSAB APNE HIT KI BAAT KARTE HAIN ... HUMKO BHI APNE HIT KI BAAT KARNI CHAAHIYE ... YE BAAT PATA NAHI DESH KE KARNDHAAR KAB SOCHENGE ...
ReplyDeleteराजनीति में बार्गेनिंग की कला चलाती है और विदेश नीति में किसी भी राष्ट्र के लिए 'राष्ट्र-हित' ही सर्वोपरि होता है..चाहे वो कोई भी देश हो. हमें अपनी विविध क्षमता में वृद्धि करना चाहिए और अधिक से अधिक राष्ट्रों से विभिन्न प्रकार से जुड़ना चाहिए फिर इन स्टेटमेंटों से इतना भी कुछ नहीं होता..हर राष्ट्र में जब किसी दूसरे देश का राष्ट्राध्यक्ष जाता है तो वह एक सन्देश देना चाहता है उस देश की मीडिया को कि हम आपके समस्त हितों को समझते हैं और आपके सहयोगी हैं..
ReplyDeleteजब से ओबाना को नाबेल पुरस्कार मिला है तब से उनका दिमाग दिन रात यही सोंचता रहता है कि कैसे दुनिया में शांति लाया जाये...अब उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला है...गब्बर सिंह वाला...अर्थात रामगढ़ गांव यदि हिंसा हो रहा है तो रामगढ़ के आदमियों को इस हिंसा से सिर्फ एक ही आदमी बचा सकता है वह खुद गब्बर..अमेरिका के विदेश नीति पर व्यवहारिक सलाह देने वाले उनके टीम के नये रंगरूटों ने उन्हें सलाह दिया है कि तिब्बत पर चीन का आधिपत्य मान लेने से अमेरिका पर कोई असर नहीं पड़ेगा, वैसे भी चीन प्रैक्टिकल तौर पर तिब्बत को दबाये बैठे है...वैसे भी भले ही ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये हैं लेकिन व्यवहारिक तौर पर वह मैनेजमेंट के फंडे से ही गाइड होते हैं....इधर दलाई लामा भी शांति का नोबल पुरस्कार लेकर भटकती आत्मा की तरह जी रहे हैं..अब बराक उनसे ज्यादा शांतिवादी हैं या कम इस पर एक बार सरकार में बैठे लोगों को विचार करना होगा...हिमालय की कंदराओं में रहने वाले किसी जोगी ने धुनी रमाते समय अपने चेलों से कहा है कि वह जवाहर लाल नेहरी की आत्मा को उस इलाके में भटकते हुये कई बार देख चुका है, हालांकि चेलों का कहना है कि इस जोगी गांजे का शूटा लगाने के बाद माओ, ताओ आदि भी नजर आते हैं...
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