Tuesday, November 3, 2009

एक इमोशनल अत्याचार ऐसा भी


सुनो ,
तुम सुन रहे हो न ?
पता नही क्यों,
यह मोबाइल फोन,
आजकल इस पर सिगनल
ठीक से नही आते !
जब से तुम गये हो,
पूरे चार साल हो गये,

तुम्हारा यह फोन ही  साथ है
लगता है अब यह भी थक गया,
साथ निभाते- निभाते !!

तुम सुन रहे हो न ?
कल रात को  तुम्हारे इस 

लाड्ले  को सुलाते ,
 लेटे-लेटे अचानक पूछ बैठा,
 ममा, ये ’पापा’ कैसे होते है ?
उसके इस अबोध सवाल का
भला मैं क्या जबाब देती
उसका मन रखने को
बोली कि बेटा,
जो तुम्हारी ममा को जगा
खुद कहीं चैन की नींद सोते है !
 पापा ऐसे होते है !!

तुम सुन रहे हो न ?
उतनी देर से
सिर्फ़ हूं-हूं किये जा रहे हो,
तुम कुछ कहो न !
मै तो उसे समझाते-समझाते
थक जाती हूं,
मगर उसे कोई यकीं नही
दिला पाती हूं !
हरदम तुम्हे 'मिस' करता है,
तुम्हारी तस्वीर देख
हंसने लगता है,
तुम्हे देखेगा तो
उसका तो रोम -रोम खिलेगा !
कब लौट रहे हो ?
तुम्हे तुम्हारा वो
'ग्रीन कार्ड' कब तक मिलेगा ?  


25 comments:

  1. OMG! kya maarmik kavita likhi hai aapne......

    bahut hi sentimental.....

    achchi lagi yeh lagi kavita....


    NB.: Kripya meri nayi kavita dekhiyega....

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना गोदियाल जी!

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  3. आप का तो इन्तजार ्रहेगा .....
    सुन्दर रचना

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  4. कल रात को सुलाते वक्त,
    तुम्हारा यह लाड्ला,
    मेरी बाहों के सिरहाने पर लेटे-लेटे,
    अचानक पूछ बैठा
    कि ममा, ये ’पापा’ कैसे होते है ?

    कब लौट रहे हो ?
    तुम्हे तुम्हारा वो
    'ग्रीन कार्ड' कब तक मिलेगा ?

    kamaal ki rachna hai...

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  5. भावप्रवण आधुनिक बोध को समेटे हुए !

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  6. बहुत ही लाजवाब रचना, बधाई ।

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  7. एक कडुवी सच्चाई से रुबरु कराया आपने, इस "ग्रीन कार्ड" के आते आते बालक भी शादी के लायक हो जायेगा,

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  8. जब भी रात को
    तुम मुझे सुलाने लगती हो,
    तो मेरे गालो पर
    ये पानी की बूंदे
    कहां से आकर गिरती हैं ?

    कमाल लिखा है आपने

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  9. सुनो न,
    तुम सुन रहे हो न ?
    पता नही क्यों,
    यह मोबाइल फोन,
    आजकल इस पर सिगनल
    ठीक से नही आते-जाते !
    जब से तुम गये हो,
    पूरे चार साल हो गये,
    लगता है यह भी थक गया,
    साथ मेरा निभाते- निभाते !!

    शायरी के लिए प्रतीक बहुत अच्छा चुना है।
    बधाई!

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  10. ग्रीन कार्ड कब मिलेगा? बस यही था आखिरी पंच। बेहद मर्मस्‍पर्शी कविता। अनेक सम्‍भावनाओं को कुरेदती हुई। बधाई।

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  11. सुन्दर कविता ....
    धन्यवाद

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  12. प्रवासी लोगों के परिवारों में अक्सर ये दर्द छाया होता है ........... बहुत ही मार्मिक लिखा है ...... हम जैसे प्रवासी इस दर्द को समझ सकते हैं .........

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  13. बहुत सुंदर शव्दो मे आप ने एक प्रवासी की बीबी का दुख कह सुनाया, यह कमीना "'ग्रीन कार्ड' पता नही कितनो के दिल तोड ्बेठा है, कितनो का घर उजाड दिया.... यह दुख तो वो ही जाने जिन पर बीतती है... बहुत सुंदर कविता धन्यवाद

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  14. GREEN CARD RED ho gayaa hai ise samajh lena chahiye jab bachcha poochhe YE PAPA KYA HOTA HAI?
    sundar..ati sundar

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  15. Sunder, ati sunder, Ek dard ko shabd dena, apne aap main hi ek khoobi hai....wonderful bhai.....

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  16. बोली कि बेटा,
    जो तुम्हारी ममा को जगा
    खुद कहीं चैन की नींद सोते है !
    ये पापा ऐसे होते है !!
    बहुत अच्छी रचना है विदेश गये पति का दर्द पत्नि की कलम से सुन्दर धन्यवाद्

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  17. एक बालक की सारी मासूमियत उतार दी है आपने .....बहुत ही भावपूर्ण रचना .....!!

    पता नहीं उसे कभी ग्रीन कार्ड मिले भी या न मिले ...अक्सर प्रवासी वहीँ ग्रिनिये हो जाते हैं ....!!

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  18. Mera likha aapko achcha laga...ye mujhe achcha laga.

    Aapke bolg se kai rang dekhe achcha laga...sarahniy aur sachcha lekhan hai ..ishwar aapko aise hi sachche ehsaas se labalab kare. Apna e-mail ho sake to ...
    aapka
    neelesh jain, Mumbai
    http://www.yoursaarathi.blogspot.com

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  19. Hil gaya, dil dimag pura hil gaya.
    Ankhen nam ho gayin.
    Ab ek gilas pani piioonga.
    Thankyou sir for this nice post.

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  20. dil mein bahut gahre utar gayi rachna.........bahut hi marmik chitran.........intzaar ke dard ko bakhubi darshaya hai...........ati sundar.

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  21. पीछे छूटे इन्तजार करते परिवार का मार्मिक चित्रण!!

    जो तुम्हारी ममा को जगा
    खुद कहीं चैन की नींद सोते है !
    ये पापा ऐसे होते है !!

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  22. achi kavita likhi hai aapne wah
    magar sach mein aise papa met bana godiyal saab

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।