गत दिवस एक विदेशी मेहमान, जो अपनी प्रेमिका(गर्ल फ्रेन्ड) संग भारत भ्रमण पर आये हुए है, को वहाँ विदेश में मेरे संपर्क सूत्र द्वारा मुझे फोन पर किये गये अनुरोध के अनुरूप आगरा घुमाने ले गया था। तडके मथुरा रोड पर पलवल तक तो सडको पर थोडा- बहुत यातायात था, और दिल्ली से चलते हुए सडक के अगल-बगल हो रहे निर्माण कार्यो को देख (सरिता विहार के आसपास बन रहे मैट्रो लाईन और बदरपुर पर बन रहे फ्लाइ-ओबर को देख कर ) विदेशी मेहमान काफ़ी प्रभावित हुए और वे जब अपने को यह कहते हुए नही रोक सके कि “वोऊवो...... इन्डिया इज प्रोग्रेसिंग” तो मैने भी अपने देश की तारीफ़ो के सिलसिले मे काफ़ी लम्बी-लम्बी छोड दी । चीन को भी अपने देश के मुकाबले गया-गुजरा बताने से नही चूका।
सुबह-सबेरे का वक्त होने की वजह से पलवल से आगे सड्क सुनशान थी, अत: मैने ऐक्सीलेटर पर थोडा और दबाब बना दिया था। गाडी के अन्दर कुछ देर से खामोशी छाई हुई थी, अत: उसे तोड्ते हुए मैने स्टीव ( उस मेहमान का नाम स्टीव जौन्सन था और उसकी प्रेमिका का नाम ऐन्डी) से पूछा,
यू स्टे विद यौर पैरेन्ट्स ?
नो, आइ एम् विद ऐन्डी फॉर पास्ट फाइव इयर, वह बोला ।
हाव अबाउट यौर फादर ? मैने पूछा ।
ही इज मैरीड, वह बोला।
ऐन्ड हाव अबाउट यौर मदर ? मैने फिर पूछा !
वह झट से बोला, सी इज आल्सो मैरीड ।
उसकी बात सुन मै डैश बोर्ड के ऊपर बैक व्यू मिरर पर एक नजर डाल, पश्चमी सभ्यता पर मन्द-मन्द मुस्कुराया और ड्राईव करते हुए सोचने लगा कि ये लोग जब इन्डिया आकर किसी बुड्डे-बुढिया को अपनी शादी की पचासवीं साल-गिरह मनाते देखते होंगे तो बडा अजीब सा मह्सूस करते होंगे, कि कैसे ये लोग इतने सालों तक इक्कठ्टा रह लेते होंगे ! मुझे श्री सुरेन्द्र शर्मा जी का टी वी पर दिया उनका वह प्रोग्राम याद आ रहा था कि चुंकि अंग्रेज लोग (पति-पत्नी) दिन-भर मे बीसियों बार किस (चुम्बन) और हग( आलिंगन ) करते है इसलिये उनका प्यार का कोटा जल्दी खत्म हो जाता है, अत: वे लोग जल्दी ही तलाक ले लेते है, और दूसरी शादी कर लेते है, जबकी अपने देश मे तो मिंया-बीबी महिनों मे ही शायद एक बार इत्मिनान से ’किस’ कर पाते होंगे एक-दूसरे को, इसलिये उनका कोटा जिन्दगी भर खत्म नही होता।
खैर, इन्ही सब बातो के बीच कब आगरा पहुंच गये, पता ही नही चला। गाडी एक जगह पार्क कर वहां से उपलब्ध बस से ताज गये। गोरी चमडी के लोगो को साथ देख लोग गाईड के लिये हमारे ऊपर लगभग ही झपट पडते थे। आगरा मे तो जैसे-तैसे मैं स्थिति सम्भालता रहा, लेकिन फतेहपुर सिकरी पहुंचने पर “इन्डिया इज प्रोग्रेसिंग” के बारे मे मैने स्टीव और ऐन्डी के सामने जो लम्बी-लम्बी छोडी थी, उन दावो की हवा निकलते देर न लगी। इलाके मे प्रवेश करते ही गोरी चमडी के दो लोगो को कार की पिछली सीट पर बैठा देखकर लोगो का झुण्ड ऐसे टूटा, मानो ये लोग हमारे पर हमला करने आ रहे हो। कुछ देर के लिये तो दोनो विदेशी मेहमान भी सहम गये थे, लोग विन्ड स्क्रीन को जिस ढंग से खटखटा रहे थे, मुझे लग रहा था कि ये लोग तो आज शीशा तोड ही डालेगे। देख रहा था कि कोई पुलिस वाला दिखे तो उसे कहुं कि ये क्या नजारा है ? एक जीप नजर आ भी रही थी, मगर पुलिस वाला नदारद । गाडी पार्क कर पीछे-पीछे आ रही भीड के एक–दो लोगो को हड्काना चाहा तो सभी एक साथ बोल पडे, भैया, ये हमारी रोजी है ! मैने समझाना चाहा कि रोजी का मतलब यह तो नही कि तुम पर्यटक को ह्रैस करो, लेकिन उस भीड मे मेरी सुनता कौन ?
खैर, पांच सौ से सुरु होकर आखिर मे सत्तर रुपये मे तैयार हुए एक गाईड को हायर कर हमने उस गाइडो की भीड से अपना पिण्ड छुडाया। मेहमानों के समक्ष मै खुद को शर्मिन्दा मह्सूस कर रहा था। अपने देश की प्रगति की असलियत सामने आ गई थी। मै उतना क्षुब्द उन गाईडो से नही था, क्योंकि वे तो बस यह दर्शा रहे थे कि इस देश मे आज पढे-लिखे नौजवान बेरोजगारों की क्या स्थिति है, गुस्सा मुझे आ रहा था इस देश के पर्यटन विभाग पर, गुस्सा आ रहा था, सरकार पर । अगले साल जो विदेशी कौमन वेल्थ खेलो के समय भारत आयेंगे, ये पर्यटन स्थल दिल्ली से सबसे पास होने की वजह से लोग यहा भ्रमण के लिये जायेंगे, और अगर वहां यही स्थिति रही तो इस देश की क्या इमेज लेकर वे अपने देश लौटेंगे ? काश कि इस देश के युवाओं के तथाकथित नेता उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के दलितों के गांव जाने के साथ-साथ, कभी-कभी एक आम नागरिक बनकर इस पर्यटन स्थल का भी भ्रमण करके आते और देखते कि देश मे पढे-लिखे युवाओं की क्या स्थिति है ?
ढांचागत विकास करना है, तो मानसिकता का करो !
बाहरी नक्सलवाद से नहीं, आतंरिक रूढ़िवाद से डरो !!
jai hind...
ReplyDeleteसंकुचित मानसिकता को विकसित करने की जरूरत है
ReplyDelete-मजा आया आपका लेख पढ़कर
हमारे ये लालची भाई लोग ही तो हमारे देश को बदनाम करते हैं। जुलाई माह में मैं हरिद्वार गया था। जिस विश्रामगृह में हमने रात बिताई थी वहाँ डोरमैटरी में एक बैड का किराया 100 रुपये था किन्तु ज्योंही एक विदेशी ने आकर बैड का किराया पूछा तो उसने उसे 500 रुपये बताया।
ReplyDeleteमेरे यह कहने पर कि क्यों लूट रहे हो इनको वह बेशर्मी के साथ हँसने लगा और बोला, "हजार पाँच सौ से इन लोगों को कुछ फर्क नहीं पड़ता साहब।"
विदेशियों के सामने ही नहीं भुखमरी और बेरोज़गारी अपनों के सामने भी हाथ फैलाने पर मजबूर करती है...हम जो अखबार मैगजीन में पढ़ते देखते हैं सच्चाई वो नहीं होती वो होती है जिसे आपने बताया है...
ReplyDeleteनीरज
ऊंची इमारतें और चौडी सडकें तो बन जायेंगी पर,
ReplyDeleteसंकुचित मानसिकता को कैसे विस्तृत करोगे ?
बहुत सुन्दर लेख लिखा है।
श्री गुरू नानकदेव जी की 540वीं जयन्ती की और
कार्तिक पूर्णिमा (गंगा-स्नान) पर्व की बधाई!
यह बात आम आदमी की है हमारे नेता भी इन गोरो के सामाने गिड गिडाते है, भी दिल्ली के हवाई आड्डे पर देखे केसे गोरो के सामने झुक झुक कर हमारे इमिंग्रेशन वाले सलाम करते है, कस्टम वाले आंखे बिछाते है... आप ने सच लिखा कि...जब दिमागों को बदलने की जागरूता भरोगे !
ReplyDeleteऊंची इमारतें और चौडी सडकें तो बन जायेंगी पर,
संकुचित मानसिकता को कैसे विस्तृत करोगे ?
आप का धन्यवाद
ढांचागत विकास करना है, तो मानसिकता का करो !
ReplyDeleteदेश खुद ही सिरे से बदल जाएगा,
ऊंची इमारतें और चौडी सडकें तो बन जायेंगी पर,
संकुचित मानसिकता को कैसे विस्तृत करोगे ?
bahut khub bahi......
बहुत सही . भाई मेरे हालत यह है की जब यहाँ से कोई यार दोस्त (अमेरिकी) इनक्रेडिबल इंडिया घूमने जाता है तो उस से लौटने पर उसका अनुभव पूछने में डर लगता है .भिखारियों सहित और प्रोफेसनालों :) से तो हमारा भी पाला पड़ता रहता है पर गोरी चमड़ी वाले तो बेचारे ओसामा बिन लादेन से भी बढ़ कर इन से आतंकित हो जाते हैं . लूट खसोट से परेसान हो वे पूरे देश को ही इनक्रेडिबल नहीं नॉन क्रेदिबल मान लेते हैं .खास कर उत्तर भारत को .
ReplyDeleteकिया क्या जाये .तथाकथित 'युवा' को क्या पडी है . ये कोई वोट बैंक तो हैं नहीं .