Tuesday, November 10, 2009

आज बस इतना ही .....


फिर से लुटती देखी सरे-आम अस्मिता, 
विधान भवन के कुंजो ने !
जब राष्ट्र-भाषा को ही बेइज्जत किया, 

कुछ सियासी टटपुंजो ने !!

अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु राष्ट्र-गीत,

राष्ट्र-भाषा की आबरू लूटने वालो !
तुमसे किस तहजीव में पेश आये, 

बस यही कहूंगा, डूब मरो सालो !!

17 comments:

  1. मराठी नहीं साहब, सियासी टटपुंजों ने.

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  2. शर्मनाक घटना है ...... महाराष्ट्र ही नहीं वर्ना SAB राष्ट भक्तों के लिए .... नेता लोगों को कभी तो शर्म आये ..... पता नहीं इनके क्षेत्र की जनता इनसे जवाब क्यूँ नहीं मांगती ......

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  3. @इष्ट देव सांकृत्यायन !
    श्रीमान , आपका आदेश सर आँखों पर , और मेरा किसी ख़ास पूरे वर्ग को ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य भी नहीं अतः आपके सुझाव अनुरूप संसोधन कर दिया है ! आपका एक बार पुनः हार्दिक शुक्रिया !!

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  4. सियासी स्वार्थ को देश, राष्ट्र से क्या लेना देना. शर्मनाक है घटना

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  5. बहुत बढ़िया!
    आपकी जागरूकता को नमन।
    मगर ये आपका साला कैसे हो गया।
    रिश्तेदारी तो सोचसमझकर ही बनानी चाहिए।

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  6. बस यही कहूंगा, डूब मरो सालो !!

    "भींत को खोवे आला-ओर घर को खोवे साला"

    आपने पहले ध्यान नही दिया-साले ही डु्बायेंगे

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  7. ऐसी घट्नाये हमेशा से शर्मनाक ही रही है ........सही लिखा है आपने!

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  8. अजीब नेता है मेरे देश के, इन के आगे कमीने भी शरमा जाये.... यह तो अपनी मां को भी पेश कर दे.... राष्ट्र भाषा तो क्या चीज है इन के सामने.
    बहुत सुंदर लिखा आप ने अज की हकिकत है यह

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  9. न हमे राष्ट्रभाषा का और न राष्ट्रगीत का पास है तो देश को क्या देंगे? दंगे, फ़साद, बंटवारा.....

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  10. अफसोसजनक एवं शर्मनाक घटना.

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  11. गोदियाल जी ,
    कुर्सी की चाहत जो जो न करवाए वह कम है .

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. एक सुव्यवस्था की अनवरतता के लिए प्रचलित राष्ट्र-राज्य की अवधारणा में हम इतिहास के संघर्षों के साक्षी कुछ प्रतीक अपनी एकता व अखंडता के लिहाज से चुनते हैं ताकि हम अपना दीर्घकालिक और प्रासंगिक विकास सम्पूर्णता में कर सके ......काश ये बात समझ लेते...कुछ लोग.

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  14. अफसोसजनक:(

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  15. बिलकुल सही कहा कहा है, पर बेशर्मों को हमें मारते हैं ... वो तो ऐसे ही मौज करते हैं !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।