फिर से लुटती देखी सरे-आम अस्मिता,
विधान भवन के कुंजो ने !
जब राष्ट्र-भाषा को ही बेइज्जत किया,
कुछ सियासी टटपुंजो ने !!
अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु राष्ट्र-गीत,
राष्ट्र-भाषा की आबरू लूटने वालो !
तुमसे किस तहजीव में पेश आये,
बस यही कहूंगा, डूब मरो सालो !!
मराठी नहीं साहब, सियासी टटपुंजों ने.
ReplyDeleteशर्मनाक घटना है ...... महाराष्ट्र ही नहीं वर्ना SAB राष्ट भक्तों के लिए .... नेता लोगों को कभी तो शर्म आये ..... पता नहीं इनके क्षेत्र की जनता इनसे जवाब क्यूँ नहीं मांगती ......
ReplyDelete@इष्ट देव सांकृत्यायन !
ReplyDeleteश्रीमान , आपका आदेश सर आँखों पर , और मेरा किसी ख़ास पूरे वर्ग को ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य भी नहीं अतः आपके सुझाव अनुरूप संसोधन कर दिया है ! आपका एक बार पुनः हार्दिक शुक्रिया !!
सियासी स्वार्थ को देश, राष्ट्र से क्या लेना देना. शर्मनाक है घटना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteआपकी जागरूकता को नमन।
मगर ये आपका साला कैसे हो गया।
रिश्तेदारी तो सोचसमझकर ही बनानी चाहिए।
बस यही कहूंगा, डूब मरो सालो !!
ReplyDelete"भींत को खोवे आला-ओर घर को खोवे साला"
आपने पहले ध्यान नही दिया-साले ही डु्बायेंगे
ऐसी घट्नाये हमेशा से शर्मनाक ही रही है ........सही लिखा है आपने!
ReplyDeleteअजीब नेता है मेरे देश के, इन के आगे कमीने भी शरमा जाये.... यह तो अपनी मां को भी पेश कर दे.... राष्ट्र भाषा तो क्या चीज है इन के सामने.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आप ने अज की हकिकत है यह
न हमे राष्ट्रभाषा का और न राष्ट्रगीत का पास है तो देश को क्या देंगे? दंगे, फ़साद, बंटवारा.....
ReplyDeletebehad sharmnak ghtna thi.
ReplyDeletesalaam aapki lekhnee ko..
ReplyDeleteअफसोसजनक एवं शर्मनाक घटना.
ReplyDeleteगोदियाल जी ,
ReplyDeleteकुर्सी की चाहत जो जो न करवाए वह कम है .
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ReplyDeleteएक सुव्यवस्था की अनवरतता के लिए प्रचलित राष्ट्र-राज्य की अवधारणा में हम इतिहास के संघर्षों के साक्षी कुछ प्रतीक अपनी एकता व अखंडता के लिहाज से चुनते हैं ताकि हम अपना दीर्घकालिक और प्रासंगिक विकास सम्पूर्णता में कर सके ......काश ये बात समझ लेते...कुछ लोग.
ReplyDeleteअफसोसजनक:(
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा कहा है, पर बेशर्मों को हमें मारते हैं ... वो तो ऐसे ही मौज करते हैं !
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