Friday, April 30, 2010

खुदा न करे कभी आपके भी कॉकरोच घुसे ! ( आप बीती )


कल मेरे ब्लॉग पर एक टिप्पणीकार ने निम्नलिखित टिपण्णी दी , तो सोचा क्यों न उनकी ख्वाइश के मुताविक आज मैं भी एक अच्छी पोस्ट लिख डालूँ ;

Kumar Jaljala said...

"महीने दो महीने में एकाध पोस्ट अच्छी भी लिखो करो गोदियाल साहब। सब लोग वेरी गुड-वेरी गुड कर सकते हैं क्योंकि आप इनकी पोस्टों पर जाकर वेरी गु़ड और हा... हा.. हा...करते हो। इससे ब्लाग जगत का कोई फायदा नहीं होने वाला। बाकी आपकी फोटो देखने से तो लगता है कि आप समझदार हो।"

ये जनाव , वैसे तो जाने पहचाने और डाक्टर घोटा विरादरी के अच्छे लोगो में से सुमार है, और पहले भी ब्लॉग जगत पर अपनी किस्मत बहुत से फर्जी नामो जैसे राहुल, निखिल, रोहित इत्यादि से आजमा चुके है , लेकिन ख़ास सफलता इन्हें हासिल नहीं हुई ! आइये इसबार हम सब मिलकर खुदा से इनके लिए यह दुआ मांगे कि खुदा इन्हें सदबुद्धि दे, और ये एक सफल ब्लॉगर बने !

अब आपको अपनी एक आप बीती सुनाता हूँ ;
सुबह तैयार होकर जब घर से दफ्तर या अपने किसी गंतव्य की और ड्राइव करते हुए निकलों तो शुरु होती है दिल्ली की भीड-भाड वाली सड़क, आगे-पीछे दांये-बाएं से रेंगती गाडिया, बायाँ हाथ गियर पर, दांया हाथ स्टेयरिंग पर, बांया पैर कभी कलच के ऊपर, कभी कलच के बगल में नीचे, और एक्सीलेटर तथा ब्रेक के ऊपर कत्थक डांस कर रहा होता है दायिना पैर , नजरें कभी सामने सड़क पर तो कभी साइड मीरर पर ! बस, यही सब कुछ चलता है घर से मंजिल तक के सफ़र की जद्दोजहद में !

अभी कुछ दिन पहले की बात है, घर से जब दफ्तर के लिए निकला था तो इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं था कि मेरे संग एक और प्राणी भी यात्रा कर रहा है ! हल्के-फुल्के जाम में गाडी करीब ३५-४० की स्पीड पर थी, कि अचानक मुझे लगा कि मेरे दाहिने पैर में कुछ हलचल हो रही है, सोचा कि हो सकता है कि दाहिने पैर की एक्सीलेटर और ब्रेक पैडलों के ऊपर हो रही एक्सरसाइज की वजह से कोई नस-वस फड़क रही होगी ! करीब तीन मिनट बाद फिर वही हलचल हुई, और अचानक किसी जीव के मेरे घुटने की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने का अहसास हुआ ! मैं तिलमिला कर रह गया कि क्या करू, एक तो गाडी जाम में थी, तुरंत कहीं अगलबगल साइड लगाकर रोक भी नहीं सकता था, जहां था अगर वहीं ब्रेक मार देता तो पीछे वाले हार्न बजा-बजा के जीना हराम कर देते !

एक अच्छे पर्वतारोही की भांति वह प्राणी धीरे-धीरे टांग में ऊपर की ओर चड़ता जा रहा था! इस अचानक आई मुसीबत से कैसे निपटू यही सोच रहा था कि उस जीव ने अपनी कंटीली टांगों से अपनी गति बढ़ा दी ! मैंने भी आव देखा न ताव, और पैंट के बाहर से ही अपनी जांघ पर जनाव को धर धबोचा! मगर इस कुश्ती के दरमियान ध्यान बंट जाने से अपने आगे चल रही मारुती ८०० के बम्पर को हल्के से ठोक दिया ! बस फिर क्या था, इधर मैं अपनी गाडी की ड्राविंग सीट पर कॉकरोच महाराज को अपनी पैंट के अन्दर जांघ पर दबोचे बैठा था, और उधर उस मारुती ८०० में सफ़र कर रहे दम्पति, जोकि ३०-३२ की उम्र के रहे होंगे , बाहें बिटोते हुए अपनी गाडी से उतर कर अपनी मधुर बाणी में शब्द्कीर्तन करते हुए मेरी गाडी की ड्राइविंग सीट वाली विंडो की तरफ बढे !

ए सी चला होने की वजह से खिड़की का शीशा बंद था, वरना तो जिस हाव-भाव में वे दिख रहे थे, तो गाडी के बाहर से ही मेरा कचूमर निकाल देते ! मैंने चेहरे पर शान्ति बनाए रखते हुए उन्हें बांये हाथ से कुछ इशारा किया! चूँकि दाहिने हाथ ने 'कॉकरोच श्री' को दबोच रखा था इसलिए उस हाथ से गाडी का दरवाजा भी नहीं खोल सकता था , फिर बाएं हाथ से दरवाजे को खोला और आहिस्ता से पैर बाहर निकाला ! वे दम्पति महोदय बोले ही जा रहे थे और साथ में मेरे सब्र की भी शायद अन्दर ही अन्दर दाद भी दे रहे होंगे कि इतना सुनने के बाद भी इस बेशर्म शख्स ने अभी तक एक भी शब्द जुबां से नहीं निकाला! राह चलते कुछ और तमाशबीन भी इर्द-गिर्द खड़े हो गए थे! मैं धीरे से बाहर निकल एक तरफ आधा झुकी हुए स्थिति में ही खडा हो गया ! और फिर मैंने उस भीड़ में खड़े उस दम्पति को अपनी तरफ बुलाया और बोला, सॉरी , आप लोगों को तकलीफ हुई , इसके लिए क्षमा चाहता हूँ , मगर आप इधर देखिये , मैंने बाए हाथ से उस ओर इशारा किया जिस तरफ दाहिने हाथ से जांघ के ऊपर कॉकरोच को पकडे रखा था ! सभी की नजर अब उसी तरफ थी , मैंने धीरे से बांये हाथ से अपनी पैंट के उस हिस्से को थोड़ा ऊपर उठाते हुए कॉकरोच को छोड़ा, तो वह एकदम सड़क पर आ गिरा और तेजी से एक तरफ को भागा !

उस विषम परिस्थिति में भी हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए, शांत स्वर में मैंने उन दम्पति महोदय से पूछा , अब आप ही बताइये कि खुदा न करे , अगर यह कॉकरोच आपके घुस गया होता तो आप क्या करते ? मेरे इस मासूम सवाल को सुनकर न सिर्फ वह दम्पति अपितु और वहाँ खड़े तमाशा देख रहे लोग भी जोर से हँसे और अपने-अपने गंतव्य को चल दिए ! मैंने भी अपनी गाडी का दरवाजा खोला और पुन: ड्राइविंग सीट पर बैठ , गाडी स्टार्ट की और एक पुराने गीत को इस अंदाज में गाते हुए मंजिल की ओर चल पडा ;
अगर तुम, ड्राइव करते हुए कहीं जा रहे हों, और कॉकरोच घुस जाये............... !

43 comments:

  1. खुदा इन्हें सदबुद्धि दे, और ये एक सफल ब्लॉगर बने !
    सहमत!

    ReplyDelete
  2. ओह! जान बची!!
    बड़ी ख़ौफ़नाक आप-बीती। गाड़ी चलाते वक़्त ऐसा वाक़या बड़ा ख़तरनाक होता है।

    ReplyDelete
  3. वेरी गुड-वेरी गुड
    हा-हा-हा
    @ कुमार जलजला जी
    हमें तो यह पोस्ट अच्छी लगी

    आदरणीय गोदियाल जी
    प्रणाम

    ReplyDelete
  4. खुदा इन्हें सदबुद्धि दे, और ये एक सफल ब्लॉगर बने !
    सहमत!

    ReplyDelete
  5. वेरी गुड-वेरी गुड........
    हा-हा-हा..........

    आदरणीय गोदियाल जी,
    प्रणाम...



    हमें तो यह पोस्ट अच्छी लगी........

    ReplyDelete
  6. आपने कुमार जलजला जी की शिकायत को सकारात्‍मक लिया .. तभी तो इस वाकये को इतने रोचक ढंग से पेश कर पाए .. सामाजिक समस्‍याओं पर लिखने से काम नहीं चलने वाला .. ऐसे ही निंदक नियरे हो तो .. हिंदी जगत का भला होने से कोई नहीं रोक सकता !!

    ReplyDelete
  7. ek baar fir bahut badhiya rachna chahe aap biti hi kyo na ho

    ReplyDelete
  8. गोदियाल साब-कुमार जलजला का जलजला कल से जलाल हो रहा है। हमारे ब्लाग पर नसीहतें देकर आए हैं।
    आपके द्वारा ही इनकी बिरादरी और नसल का असल
    पता चला है।

    एक काकरोच.......!हा हा हा
    अच्छी पोस्ट

    ReplyDelete
  9. हा हा हा ! गोदियाल जी , मजेदार संस्मरण।
    शुक्र है कि गाड़ी का शीशा बंद था वर्ना कचूमर तो निकलता पर आपका नहीं , उसके चेहरे का।
    एक शुक्र और भी है । पर्वतारोही शायद नौसिखिया था ।
    इसलिए एवेरेस्ट की चोटी तक नहीं पहुंचा । :)

    ReplyDelete
  10. हा हा हा!
    बच गए गोदियाल साहब!नहीं तो संस्मरण का 'आप-मरण' हो जाता!

    कुंवर जी,

    ReplyDelete
  11. बेचारा कांकरोच... अब उस भयंकर गर्मी मै सडक पर पेदल चल कर घर तक केसे वापिस जायेगा.
    मजेदार
    छोडो इन साहब की बात...

    ReplyDelete
  12. यह आपबीती तो बहुत ही रोचक रही!

    ReplyDelete
  13. संगीता पुरी जी की बात से सहमत.

    आपके काकरोच ने मुझे खूब गुदगुदाया

    ReplyDelete
  14. मजा आ गया
    जितनी तारीफ़ की जाय कम है
    सिलसिला जारी रखें
    आपको पुनः बधाई
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

    ReplyDelete
  15. मजा आ गया
    जितनी तारीफ़ की जाय कम है
    सिलसिला जारी रखें
    आपको पुनः बधाई
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. मुबारक हो भाई साहब !
    आप सूरत से तो समझदार लगते हो !

    ReplyDelete
  17. @सतीश सक्सेना जी,वेरी गुड-वेरी गुड
    हा-हा-हा

    ReplyDelete
  18. बहुत जोर की पोस्ट...आनंद दायक...सही है गलत समय पर काक्रोच क्या किसी का घुसना मुश्किल में डाल देता है...

    नीरज

    ReplyDelete
  19. na baba hamein to bahut dar lagta hai is prani se.........dekhte hi foonk sarak jati hai aur aapne jhela hai..........aapki himmat ki daad deni padegi agar hum is jagah hote to na jaane kitno ko lapet liya hota ya koi accident to jaroor hi kar diya hota.......hahahaha

    ReplyDelete
  20. काकरोचों को इतनी तो समझदारी दिखानी ही होगी उचित मौके पर ही कहीं भी प्रवेश करें, खासतौर पर जब कोई गाड़ी चला रहा तो बिलकुल भी नहीं ---

    ReplyDelete
  21. आदरणीय गोदियाल जी
    प्रणाम

    ReplyDelete
  22. आदरणीय गोदियाल जी
    प्रणाम

    ReplyDelete
  23. क्या गोदियाल साहब, घुसपैठिये को भाग जाने दिया?
    मसल देना था जूते से, एक तो कम होता दुनिया से।

    फ़िर आयेगा तो हमारी सलाह पर अमल करना जरूर, नहीं तो आप में और हमारी सरकार में क्या अंतर रह जायेगा?

    संस्मरण था तो बढ़िया था, और इशारा था कहीं और तो और भी बढ़िया था।

    ReplyDelete
  24. वाह जी जबरदस्त, आनंद आगया.

    रामराम.

    ReplyDelete
  25. .
    .
    .
    हा हा हा हा,
    रोचक!
    और मजेदार भी...

    ReplyDelete
  26. कोई हा.. हा... कर रहा है तो कोई ही.. ही। पर कोई यह तो बताए कि गोदीलाला साहब को ऐसी क्या बात लिख दी गई है जिससे उन्हें मिर्ची लगी है। सिर्फ यही न कि महीने दो महीने में एकाध पोस्ट अच्छी लिखा करो। अब यह टिप्पणी कर रहा हूं तो उसे प्रकाशित नहीं करेंगे। कोई मुझे फर्जी बता रहा है तो कोई सामने आकर बात करने की चुनौती दे रहा है। पर मुझे लगता है कि जब वक्त आएगा तो मैं खुद-ब-खुद सामने आ जाऊंगा। कोई मुझे निखिल बता रहा है तो अखिल तो कोई और कुछ। आप लोग बड़े विचित्र किस्म के आदमी हो। जब कोई सामने आकर बात करता है तो उसकी मर्दानगी देखकर पीछे भाग जाते हो और जब कोई नाम बदलकर आप लोगों को असलियत बताता है तो सीना ठोंककर कहते हो.. फर्जी आदमी नहीं चलेगा। कौन है फर्जी पहले यह तय कर लो। यदि बहस करने का जिगर ही नहीं रखते हो तो फिर काहे के लिए ब्लाग लिखते हो। यदि यह टिप्पणी आपने प्रकाशित कर दी तो ठीक वरना काकरोच लिखने वाले को मैं लोगों का मामू बनाने वाला मच्छर समझूंगा। बाकी आपकी फोटो देखकर तो फिर से यकीन हो रहा है कि आप समझदार किस्म के आदमी हो। कही फोटो देखकर मैं धोखा तो नहीं खा रहा हूं। यदि वाकई स्वस्थ बहस पर यकीन रखते हो तो टिप्पणी प्रकाशित करके दिखाओ।

    ReplyDelete
  27. चलिए टिप्पणी प्रकाशित हो गई है। अब इस पोस्ट पर मैं आपकी क्लास लगा लेता हूं। पहले तो यह बताइए गोदीलाला साहब कि आप गाड़ी इतनी गंदी ही क्यों रखते है उसमें काक्रोच के पनपने का खतरा हो। या तो आपकी गाड़ी गंदी रहती है या फिर आप अपने शरीर में जो कपड़ा पहनते हैं उसे समय-समय़ पर धोते नहीं है। आपको पता है न काकरोच कहां पैदा होते हैं। गंदगी में।
    जब तक आप गंदगी के साथ रहेंगे काकरोच आपका साथ नहीं छोड़ने वाले। दूसरा लेख लिखते समय आप दुविधा में रहते हैं। एक तरफ तो आप काकरोच को भला-बुरा कहते हैं तो दूसरी तरफ उसे श्री कहकर भी संबोधित करते हैं। आपको पता है श्री किसके आगे लगाया जाता है। तीसरा आपने अपने लेख में बेहद जाम में फंसे होने का जिक्र किया है और फिर ऐसे हालात भी बताए हैं कि आप आसानी से जिसकी गाड़ी ठुकी है उसे काकरोच भी दिखा देते हैं। इससे लेख की विश्वसनीयता पर फर्क पड़ता है। कल्पनाशीलता अच्छी चीज है लेकिन वह विश्वसनीय हो तो बेहतर लगेगी। हिम्मत है तो जवाब दीजिएगा मैं जवाब देने के लिए तैयार हूं।

    ReplyDelete
  28. एक शख्स ने घुसपैठिया कहकर जूते से मसल दिए जाने की टिप्पणी प्रकाशित की है। यदि दम है तो अपने ब्लाग पर टिप्पणियों के आगे-पीछे कपड़ा लगाकर मत रहना। किसी दिन आपके दर्शन के लिए भी आऊंगा।

    ReplyDelete
  29. आशा है अंधड में आपके मकान का टीन-टप्पर नहीं उड़ा होगा। बाकी फोटो से आप समझदार आदमी लगते हो।

    ReplyDelete
  30. सबसे अच्छी टिप्पणी संगीता पुरी जी की है। जो मानती है कि निदंक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाए. बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुहाय।
    गोदीलाला साहब... जवाब क्यों नहीं दे रहो हो। क्या टिप्पणी मिटाने वाले हो क्या।

    ReplyDelete
  31. हो गई बोलती बंद। अब दम है तो एक और पोस्ट लिखकर दिखाना, हां पोस्ट के शीर्षक में जलजला के लिए जरूर लिखना ताकि मैं सबेरे पढ़कर जवाब दे सकूं। बाकी हा... हां करो या ही ही... फोटो से आप समझदार किस्म के इंसान लगते हो।

    ReplyDelete

  32. अगर नमूने तौर पर कुछ अच्छी पोस्ट का लिंक दे सकें, जलजला साहब,
    तो हमारे जैसे ज़ाहिल ब्लॉगर का कुछ भला भी हो ।
    आइँदा जो तुमको हो पसँद वही बात लिखेंगे ।
    वैसे पोस्ट और टिप्पणी का सामँजस्य, बड़ा बेहतरीन बन पड़ा है,
    काकरोच का जलजला !

    ReplyDelete
  33. सुबह-सुबह आपकी फोटो देखने को बड़ा मन कर रहा है :-)

    बात यह पते की है कि काकरोच इस भयंकर गर्मी मै सडक पर पेदल चल कर घर तक केसे वापिस जायेगा.

    दराल जी तो इसे एवेरेस्ट तक ले जाने की सोच रहे

    सही है गलत समय पर काक्रोच क्या किसी का घुसना मुश्किल में डाल देता है...

    ReplyDelete
  34. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  35. शुक्रिया डा० अमर साहब , आपने सब कुछ कह दिया ! घटिया और नीच किस्म की किसी भी चीज से अच्छे की उम्मीद रखना ही नादानी है ! इस्लाम धर्म या कोई और धर्म बुरा नहीं था लेकिन बुरा इस लिए बन गया क्योंकि उसे नीच और कायर लोगो ने ज्यादा अपना लिया, अत: अच्छे परिणाम की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?

    ReplyDelete
  36. गोदियाल साब की जय हो।

    ReplyDelete
  37. संस्मरण मजेदार था....जलजला साहब का शुक्रिया कि उनकी वजह से ये संस्मरण इतने रोचक ढंग से यहाँ पढने को मिला ....

    ReplyDelete
  38. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  39. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...