"मीट राहुल" यही तो वो कोड था जिसे हमारे मीडिया और खुफिया तंत्र ने तुंरत डिकोड कर दिया, इस अनुवादित रूप में कि हेडली और राणा किसी राहुल नाम के शख्स को मारना चाहते है! सबके कान खड़े हो गए, इस भय से कि कहीं उनका तात्पर्य या फिर निशाना अपने आज के युवा वर्ग के नेता कहे जाने वाले राहुल भैया तो नहीं है ? बस फिर सारा तंत्र, सारा मीडिया जुट गया, उस मेल की एक-एक कडिया जोड़ने में ! और नतीजा हमारे सामने है- फिल्म निर्माता महेश भट्ट का बेटा राहुल भट्ट ! काश कि इतनी तत्परता से हमने वो दिल्ली बम धमाको, जयपुर बम धमाको, अहमदाबाद बम धमाको, बैंगलोर बम धमाको की कडिया भी जोड़ी होती, तो शायद मुंबई के २६/११ की परिणिति ही देखने को न मिलती ! लेकिन उस वक्त 'मीट राहुल' कोड हमारे ये लोकतंत्र के रखवाले नहीं पकड़ पाए थे ! ऐसा लगता है कि हमारे खुफिया तंत्र ने भी इस देश की महान राजनीति की भाषा को बखूबी इस्तेमाल करना सीख लिया है, इसीलिये वे अपना पल्लू झाड़ने के लिए बीच-बीच में यह चेतावनी जारी कर कि फिर से आतंकवादी घटना हो सकती है, अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठते है ! अगर ऐसा न होता तो २६/११ के बाद भी हेडली भारत में मेहमान बनकर नहीं बैठा होता! २६/११ के बाद भी वह कई बार भारत से कराची, पाकिस्तान आता जाता रहा, लेकिन हमारे इस चौकन्ने तंत्र और राजशाही को कानो-कान खबर नहीं हुई ! इससे बड़ी और क्या लापरवाही हो सकती है ?
वो तो शुक्रिया अदा कीजिये अमेरिकी खुफिया तंत्र का, जो उन दोनों को समय से पकड़ लिया वरना एक और २६/११ होता, बहुत सारे निर्दोष मरते, हमारे नेता दो चार गीदड़ भभकिया पडोशी मुल्क को देते, और फिर भूल कर अगले होने की तैयारी में जुट जाते ! हम लोग इस बात को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे कि राहुल भट्ट हेडली और कंपनी को इतना प्रिय क्यों था, जोकि आतंकवादियों के आँका हेडली को सलाह दे रहे थे कि " जाकर राहुल से मिलो" ? कुछ तो बात है जो वह इनको इतना प्रिय था ?
और अंत में चलते-चलते : आज यानी चौदह नवम्बर को १९६२ में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण की याद वर्तमान में बन रही, उस वक्त जैसी परिस्थितियों की वजह से ताजा हो गई, और उन अपने वीर युवा सैनिको को श्रदांजली अर्पित करता हूँ, जिहोने अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए ,देश-रक्षा और इस देश के रहनुमाओं के उज्जवल भविष्य के लिए अपना वर्तमान न्योछावर कर दिया था ! एक शेर अर्ज करता हूँ ;
वतन परस्ती का जूनून था जो यह पथिक
टेडी-मेडी,उबड़-खाबड़ राहो पर चलता गया,
ये बात और है चचा, कि तुम्हारे बोए शूल
वक्त-वेवक्त इन पैरो को, जख्म देते रहे !!
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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बिलकुल सही बात...
ReplyDeletei miss ya chacha .....! :0)
ReplyDelete"काश कि इतनी तत्परता से हमने वो दिल्ली बम धमाको, जयपुर बम धमाको, अहमदाबाद बम धमाको, बैंगलोर बम धमाको की कडिया भी जोड़ी होती"
ReplyDeleteभाई, सीधी सी बात है कि इन धमाकों में कोई महत्वपूर्ण राजनेता(?) थोड़े ही मरता है, मरते हैं तो कीड़े मकोड़ जैसे साधारण लोग जिनकी जिन्दगी की कीमत ही क्या है?
aaj Nehroo ji ke jaman din par 1962 ke veer yodhaon ko yaad ker ke sachhee shradhaanjali di hai aapne ...
ReplyDeleteहेडली-प्रसंग के बहाने मीडिया को भी काम मिल गया अपनी-अपनी टीआरपी चमकाने का। बधाई।
ReplyDeleteजनाब अच्छा विमर्श फरमाया आपने ...
ReplyDelete"काश कि इतनी तत्परता से हमने वो दिल्ली बम धमाको, जयपुर बम धमाको, अहमदाबाद बम धमाको, बैंगलोर बम धमाको की कडिया भी जोड़ी होती"
ReplyDeleteकाश एसे हमलो मै कोई महत्वपूर्ण राजनेता या उस के परिवार को मरता तो इन कुतो को भी पता चलता कि दर्द क्य होता होता है, गरीब जनता मरे इन्हे क्या, वोट तो बंगला देश नेपाल से ओर भी आ जायेगे
'मीट राहुल ' कोड है ??
ReplyDeleteमैं समझा शायद महेश भट्ट की फिल्म का नाम है अपने बेटे राहुल को मिलवा रहे हैं देशवासियों
से ,जिसमे
कोई हेडली नाम का विलेन है , जो राहुल की वजह से पकडा जाता है |
क्या कहा - हेडली के कारण राहुल पकडा गया ?
तो क्या हुआ निगेटिव रोल होगा
ुआपसे पूरी तरह सहमत धन्यवाद्
ReplyDeleteaapke is lekh se pooritarah sahmat hoon........
ReplyDeleteवतन परस्ती का जूनून था जो यह पथिक
टेडी-मेडी,उबड़-खाबड़ राहो पर चलता गया,
ये बात और है चचा, कि तुम्हारे बोए शूल
वक्त-वेवक्त इन पैरो को, जख्म देते रहे !!
bahut sahi......
सही कहा आपने।
ReplyDeleteमहेश भट्ट को अब इस मामले पर एक रियलिस्टिक फिल्म बनानी चाहिए।
सही बात है,राहुल की जगह और कोई नाम होता तो हो सकता है एक दो जगह मोमबत्तियां जलाने का कार्यक्रम हो जाता।रहा सवाल धमाको को डिकोड करने का तो उसमे मरने वाले भी तो कोई बड़े नाम वाले नही थे।एक छोटा सा उदाहरण दूंगा हमारे प्रदेश के नक्सल इलाके मे एक हेलिकाप्टर गुम होने का मामला हुआ था।महीना भर खोज़ की फ़ारमेलिटी करने के बाद अभियान बंद कर दिया गया मगर उस हेलिकाप्टर को सेना समेत पुलिस और अन्य एजेंसिया ढूंढ नही पाई।चार लोग सवार थे उस पर उनके परिवार के लोग यंहा और आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाई एस आर जो अब स्व है के सामने रोते रहे गिड़गिड़ाते रहे मगर कुछ नही किया गया,क्यों?क्योंकी उसमे कोई बड़ा नाम सवार नही था वरना जब वाई एस आर का लापता हेलिकाप्टर एक दिन मे ढूंढ लिया जाता है तो दूसरे हेलिकाप्टर को महीने भर मे भी क्यों नही ढूंढा जा सका?अच्छा है राहुल बाबा सलामत रहे,उनके नाम से ही सही कुछ तो हुआ। वरना फ़िर हम अनाम लोगों की मौत पर सिर्फ़ और सिर्फ़ आंसू ही बहा पाते,इसके सिवाय और क्या कर पाते,दो चार गालियां बक़ देते।
ReplyDeleteबहुत बढिया।पोल खोल कर रख दी है आपने इस सड़ेले सिस्ट्म की।
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