Sunday, December 26, 2010

जिन बच्चों को झूठ सिखाया जाता है उनकी नस्ल हिंसक होती है - भगवान बुद्ध !

वैसे फिलहाल इस तरह का लेख लिखने के कदाचित मूड मे न था, किन्तु इन्सान के आस-पास जब कुछ घट्नाये ऐंसी जन्म ले लेती है, जो कहीं उसके मानस पटल पर कुछ उद्वेलित भाव छोड जायें, तो निश्चिततौर पर इन्सान अपने आन्तरिक भावों को नियंत्रण मे रख पाने मे दिक्कत महसूस करता है. और ऐसा ही कुछ मै भी महसूस कर रहा था.

इस पावन-भूमि पर समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, और आज हम उन्हे भगवान के शीर्ष रखने की कोशिश इसीलिये करते हैं क्योंकि हजारों साल पहले उनके द्वारा सिखाया गया बौद्धिक, आद्ध्यात्मिक और व्याव्हारिक आचरण आज भी सौ प्रतिशत प्रसांगिक हैं, और समय की कसौटी पर एकदम खरा उतरता हैं. वो आज भी हमारे लिये प्रेरणास्रोत का काम करता है. भगवान बुद्ध भी अपने समय की एक ऐसी ही दिव्य, आलौकिक ह्स्ती थे, जिन्होने कहा था कि जिन बच्चों को झूठ सिखाया जाता है उनकी नस्ल हिंसक होती है . अभी कुछ दिनों पहले यानि १६ दिसम्बर, जिस दिवस को आज से ४० साल पहले भारत ने पाकिस्तान पर एक निर्णायक विजय प्राप्त की थी, और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश), पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हुआ था, उसके बारे मे भारतीय मीडिया की वेब साइटों पर खास कुछ नया न पाकर. उत्सुक्ताबश मैं पाकिस्तान की एक वेब-साइट पर इसी से सम्बंधित एक लेख पढ रहा था, और पढ्ते-पढते कालेज के दिनों मे एक सहपाठी के पाकिस्तानी समुदाय विशेष के प्रति कहे गये वे शब्द फ़िर यकायक याद आ गये कि ये लोग झूठ बहुत बोलते है, इनकी कथनी और करनी मे बहुत फर्क है, अगर ये अपने को पाक-साफ़ साबित करने के लिये सबूत के तौर पर छन्नी मे भरकर पानी भी तुम्हारे सामने ले आयें, तब भी इन पर विश्वाश मत करो.

कभी सोचता हूं कि पता नही इन्हें सच स्वीकारने और कहने मे इतनी दिक्कत क्यों होती है.पाकिस्तान के बच्चों को आज भी उनके स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों मे तथ्यों से परे बांग्लादेश से सम्बन्धित १९७१ के युद्ध और उसमे भारत, खासकर हिन्दुओं की भूमिका से सम्बन्धित जहर इस कदर भर के रखा गया है कि दसवीं का पाठ्यक्रम पूरा करते ही हजारों कसाब पाकिस्तान की सरजमीं पर स्वत: पैदा हो जायें. लेकिन अफ़सोस तब और भी अधिक होता है जब वहां का शिक्षित कहा जाने वाला मीडिया भी वास्तविक तथ्यों को न पेश कर अपने पारम्परिक धर्म का पालन करते हुए, बांग्लादेशी अशान्ति के लिये एक बहुत ही बेहुदा कारण यह प्रस्तुत करता है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) मे स्कूलों मे हिन्दु शिक्षक ही अधिक थे, इसलिये उन्होनें बांग्लादेशी बच्चों को सिर्फ़ पाकिस्तान के खिलाफ़ पाठ पढाया, इसलिये पाकिस्तान के खिलाफ़ वहां अशान्ति बढी.

पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश मे किस कदर अत्याचार और व्यभिचार फैलाया, इसका इससे बडा और क्या सबूत हो सकता है कि गिनीज बुक मे बांग्लादेश मे पाकिस्तानी सेना की करतूतें दुनियां के पांच सबसे बडे नरसंहारों मे सम्मिलित है. और इनके झूठ की हद देखिये कि जहां बांग्लादेश इसमे कुल ३० लाख लोगों के मारे जाने की बात कहता है, वहीं पाकिस्तानी सरकार द्वारा गठित आयोग सिर्फ़ २६००० नागरिक मौतों की बात करता है. और यह वास्तविकता से कितने परे है, उस बात का अन्दाजा आप इस पैराग्राफ़ को पढ्कर लगा सकते है;

"The human death toll over only 267 days was incredible. Just to give for five out of the eighteen districts some incomplete statistics published in Bangladesh newspapers or by an Inquiry Committee, the Pakistani army killed 100,000 Bengalis in Dacca, 150,000 in Khulna, 75,000 in Jessore, 95,000 in Comilla, and 100,000 in Chittagong. For eighteen districts the total is 1,247,000 killed. This was an incomplete toll, and to this day no one really knows the final toll. Some estimates of the democide [Rummel's "death by government"] are much lower — one is of 300,000 dead — but most range from 1 million to 3 million. … The Pakistani army and allied paramilitary groups killed about one out of every sixty-one people in Pakistan overall; one out of every twenty-five Bengalis, Hindus, and others in East Pakistan. If the rate of killing for all of Pakistan is annualized over the years the Yahya martial law regime was in power (March 1969 to December 1971), then this one regime was more lethal than that of the Soviet Union, China under the communists, or Japan under the military (even through World War II). (Rummel, Death By Government, p. 331.)"

वैसे ये इस्लाम के सिपहसलार मुसलमानों के मुद्दे पर विश्व-बन्धुत्व की बात बडे जोर-शोरों से करते है, उनके हक मे एकजुट होकर लडने की बात करते है, जोकि दुनियां का एक और सबसे बडा झूठ है. बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान, इराक मे इन्ही के द्वारा मुसलमानों का कत्लेआम, इससे बेहतर और क्या उदाहरण पेश किये जा सकते हैं इनके विश्व-बन्धुत्व के. पाकिस्तानी आज भी बांग्लादेशियों को, बिहारी मुसलमानों को अपने से निचले दर्जे का समझते है. शिया-सुन्नी का ३६ का आंकडा तो पुराना है ही, और बात करेंगे इस्लामिक बिरादरी की, निन्दा करेगे हिन्दु जाति-वाद की, हिन्दु राष्ट्रवाद की. कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि इनका विश्व-बन्धुत्व सिर्फ़ नफ़रत और हिंसा फैलाने मात्र के लिये ही है.

अन्त मे उस बात का जिक्र करना भी उचित होगा, जिसने मुझे यह लिखने को प्रोत्साहित किया कह लो या यूं कह लो कि मजबूर किया. जैसा कि आप लोग भी जानते होंगे कि अभी कुछ ही रोज पहले भारत की डाक्टर शालिनी चावला सउदी अरब से रिहा होकर अपने पति डा० आशीष चावला के शव के साथ भारत वापस लौटी. पिछले ११ महिने मे उन्होनें सउदी अरब के जालिमों के हाथों क्या-क्या जुल्म सहे, मीडिया के मार्फ़त आप लोग भी वाकिफ़ होंगे. और वह भी एक झूठी कहानी गढकर. खैर, अफ़सोस की बात है कि इस्लाम के ये तथाकथित संरक्षक किसी महिला के दर्द को समझना तो दूर उससे बद्सुलूकी करने मे अपनी शान समझते है, लेकिन इससे भी अफ़सोसजनक बात रही, यहां के उर्दु-मीडिया द्वारा इस खबर को खास तबज्जो न दिया जाना. जरूर यहां इनका विश्व-बन्धुत्व पक्षपातपूर्ण हो हिलोरे मारने लगता होगा. शायद इन्हे भी बचपन मे झूठ बोलना बहुत सिखाया गया होगा. दूसरों को बुरा बताने वाले ये लोग, काश, तनिक अपनी गिरेबां मे झांककर आस्ट्रेलिया से कुछ सबक लेते कि आस्ट्रेलिया ने तो आखिरकार न सिर्फ़ उस भारतीय डाक्टर को मुआवजा दिया, बल्कि उससे क्षमा भी मांगी, जिसे भूलबश वहां आतंकवादी समझ लिया गया था.

Friday, December 24, 2010

आगाज इक्कीसवीं सदी का !

नफ़रती जूनून मे सुलगता शिष्ट ये समाज देखा ,
अमेरिकी द्वी-बुर्ज देखे और मुंबई का ताज देखा।  

आतंक का विध्वंस देखा कश्मीर से  कंधार तक ,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं, ऐसा तेरा आगाज देखा।


सब लड़खड़ाते दिखे, यक़ीन, ईमान  धर्म-निष्ठा,
छलता रहा दोस्त बनके ,हर वो धोखेबाज देखा।



बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट,आडम्बरों का, इक नया अंदाज देखा।

नमक, रोटी और प्याज, आहार था जो दीन का ,
उसे खून के आंसू रुलाता, मंडियों में प्याज देखा।

माँ दिखी अपने शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा।  


फक्र था चमन को जिस,अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखटे एक दबंग चंड की,दम तोड़ता वो नाज देखा।

बयाँ  इन शब्दों  में करते  हो रहा अफ़सोस है , किंतु
'परचेत' अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा। 

Sunday, December 19, 2010

इस आतंकवाद को भी समझना होगा !

न सिर्फ़ देशभर मे अपितु पडोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश मे भी विकीलीक्स के इस खुलासे के बाद कि आजादी के बाद से ही इस देश को नरक मे धकेलने वाले एक शाही परिवार को , देश के लिये हिन्दु आतंकवाद से कितनी चिन्ता हो रही है , तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है। और खुद को दुनिया का स्वयंभु पुलिसवाला बताने वाला एक देश जहां इराक और अफ़गानिस्तान मे मुसलमानों को समूची मानवता का दुश्मन बताकर लाखों की तादाद मे बेगुनाहों की जान ले चुका, वह इस देश के मुसलमानों को शरीफ़ इन्सानों का खिताव देने से भी नही चूकता क्योंकि इस देश मे पिछले एक दशक के बम विस्फ़ोटों और आतंकवादी हमलों मे जिन हजारों बेगुनाहों और सुरक्षाबलों के जवानो की जानें गई, इनकी सोच के हिसाब से अमेरिकियों के मुकाबले उनकी जान की तो कोई कीमत ही नही थी। और वह सब हमले मुस्लिमों ने नही, "मुस्लिम आतंकवादियों" (मानो ए कही अलग दुनिया से टपके हो ) ने किये, इस देश के मुस्लिमों में से सिर्फ़ कुछ ही ने इन्हे लौजिस्टिक सपोर्ट प्रदान की थी, बस। सिमी और इन्डियन मुजाहिदीन के कैडरों मे जितने लोग भर्ती है, वे सब तो पाकिस्तान से आये हुए है, यहां के मुस्लिमों मे से तो कोई भी नही है।

लेकिन इस देश के लोगो की गाडी कमाई पर ऐश करने वाले नेता, शाही परिवार और अमेरिका क्या कहता है, हमे उसे खास तबज्जो न देकर इस बात से चिन्तित होने की जरुरत है कि देश के भीतर आज एक नया आतंकवाद बुरी तरह सिर उठा चुका है, जिसे हम लोग कल तक बहुत हल्के मे लेते थे, वह अब एक गम्भीर समस्या का रूप ले चुका है। आज देश मे अपराध का ग्राफ़ किस हद तक ऊपर जा चुका है वह किसी से छुपा नही, राह चलते महिलाऒं से चेन और पर्स छीननें की घटनायें तो आम हो ही चुकी, अब कानों के कुन्डल भी नोच कर ले जा रहे है। वजह--- कानून का कोई खौफ नहीं। और हम सिर्फ़ पुलिस की निष्क्रियता और सिस्टम का रोना रोकर रह जाते है, लेकिन कभी यह नही सोचते कि हमने इसमे सक्रियता लाने के लिये सार्थक और उपयोगी प्रयास क्या किये? अभी वो तो संसद चली नहीं, नहीं तो इस सत्र में ही एक विधेयक लाया जाने वाला था जिसमे यदि हिरासत में किसी दोषी की मौत हो जाए तो उन पुलिस वालों को मौत की सजा का प्रावधान है। अब बताईये कि ऐसे कानूनों, ऐसे मीडिया और राज शाही जो अपराधियों को पीडित के मुकाबले ज्यादा तब्ज्जो देता हो,किसी पुलिस वाले से तत्पर्ता की आप क्या उम्मीद रखते है ?


एक बात और, हम देखादेखी और बराबरी तो पश्चमी राष्ट्रों की करते है मगर हैं अभी तक लातों के भूत ही , और शायद हमेशा रहेंगे, इसलिए डंडे , लात-घूंसों के बगैर इस देश का भला नहीं हो सकता। यह बात शायद मैंने अपने किसी लेख मे पहले भी कही थी कि हम लोगों की मानसिकता इस तरह की है कि मान लीजिये आप एक फैक्ट्री में अधिकारी है, आप किसी मजदूर को प्यार से और आराम से इस तरह पुकार कर कहोगे कि " भैया ज़रा इधर आना " तो वह एक बारी बोलने में कभी नहीं आयेगा , लेकिन अगर आप चिल्लाकर गाली भरे लहजे में उसे पुकारते हो तो वह तुरंत आयेगा और आपका काम भी फटाफट करेगा। (यह हमारी रगों में लम्बी दास्ता का जीवाणु है )

जो मुख्य बात मै कहना चाहता था, उसके लिये अब यह खबर देखिये;
MUMBAI: Here's a man really committed to family life! A total of 28 children from four wives, all of whom finally got fed up with man's criminal ways and convinced him surrender to the cops in the hope it will mitigate his sentence.

Atique Shaikh (36) had been on the run for the last two years and his four wives along with the children, who live in the same Mumbai neighbourhood, put their heads together and decided to convince Shaikh to surrender.

Shaikh fell in love with all four women at different times and got married to them. They all stay in Govandi in separate houses. While his eldest son, a 17-year-old, is graduating in Arts, his 10 other children are studying in various schools in Govandi. His wives work as domestic helps and run their respective families.

According to police, it were his kids who implored him to quit crime. His children pleaded that if he continued, it would become difficult for them in school and during their weddings. "It really had an impact on his mind and he decided to heed them,'' said a police officer

Read more: Maha man gives up crime for family - The Times of India
और सोचिये कि धर्म की दुहाई देकर देश के अन्दर इस नये आतंकवाद का कितना बडा खेल खेला जा रहा है। यह सिर्फ़ एक बिरला उदाहरण ही नही अपितु इमान्दारी से देखोगे तो दिल्ली के ही किसी एक मोह्ल्ले मे ही इस जैसे बीसियों उदाहरण मिल जायेंगे. इस एक शख्स ने अपनी ३६ साल की उम्र मे चार बीवियों से २८ बच्चे पैदा किये, कोई आश्चर्य नही। यह भी मानकर चलिए कि अभी १०-१५ और पैदा करेगा। आश्चर्य तो तब होगा जब ये २८ बच्चे पेट के लिये अपराध करना शुरु करेंगे और अपनी अशिक्षा, गरीबी और संसाधनो की कमी के लिये दोष देंगे, बहुसंख्यक हिन्दुओं को। और यही सब कुछ ऐसे ही जारी रहा तो बहुत जल्दी यह बहसंख्यक का खिताब भी छिन जायेगा। और यह भी मानकर चलिये कि ये लोग सदा ऐसे ही रहेंगे, आसानी से बदलने वाले नही। तो सोचिये इस नये आतंकवाद के प्रति भी।

Saturday, December 11, 2010

नवगीत- हम भारत वाले! (रिमिक्स)

साल २०११ चंद हफ्तों बाद हमारी देहरी पर होगा अत: आप सभी से यह अनुरोध करूंगा कि देश के वर्तमान हालात के अनुरूप इस रिमिक्स को खूब गुनगुनाये नए साल पर;

करलो जितनी जांचे,
आयोग जितने बिठाले,
नए साल में फिर से करेंगे,
मिलकर नए घोटाले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!

आज पुराने हथकंडों को छोड़ चुके है,
क्या देखे उस लॉकर को जो तोड़ चुके है,
हर कोई है जब लूट रहा देश-खजाना,
बड़े ठगों से हम भी नाता जोड़ चुके हैं,
सुथरे घर, उजली पोशाके, कारनामे काले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!

अभी लूटने है हमको तो कई और खजाने,
भ्रष्टाचार के दरिया है अभी और बहाने,
अभी तो हमको है समूचा देश लुटाना,
देश की दौलत से रोज नए खेल रचाने,
आओ मेहनतकश पर मोटा टैक्स लगाए,
नेक दिलों को भी खुद जैसा बेईमान बनाए,
पड़ जाए जो फिर सच,ईमानदारी के लाले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!

करलो जितनी जांचे,
आयोग जितने बिठाले,
नए साल में फिर से करेंगे,
मिलकर नए घोटाले !
हम भारत वाले, हम भारत वाले !!


जय हिंद !

Sunday, December 5, 2010

अहसास !


ये बताओ,
तुम्हारे
उस बहुप्रितिक्षित
कुम्भ आयोजन का
क्या हुआ,
जो तुम्हारे
हुश्न, मुहब्बत
और वफ़ा की त्रिवेणी पर
अर्से से प्रस्तावित था ?

मैं तो कबसे
अपने मन को
इस बात के लिए
प्रेरित किये था कि
इस बार मैं भी
संगम पर डुबकी लगा ,
जिगर के कुछ दाग
धो ही डालूँगा !

अब तो यही सोचकर
संयम पैरों तले से
फिसलता नहीं
कि प्रतीक्षा करवाना
तुम्हारी पुरानी आदत है !!

Thursday, December 2, 2010

दुनिया जाए भाड़ में !


ऑफिस के काम से मुंबई जाना हुआ। सुबह ११  बजे ही काम निपट गया। छोटा सा काम था, अत: आधे घंटे में ही निपट लिया। वापसी सवा तीन बजे की थी, अत: समय गुजारने के लिए सोचा कि मैरीन ड्राइव पास में है, क्यों न कुछ देर मैरिन ड्राइव पर चहल कदमी की जाए। सामने सड़क पार की और पहुँच गए। वैसे तो बीसियों बार उस सड़क से गुजर चुका  हूँ, मगर पैदल का आनंद पहली बार ले रहा था। वहां पत्थरों की आड़ में बहुत सी दिव्य-आत्माए बैठी थी, कोई घर से दफ्तर के बहाने निकला होगा तो कोई कालेज के बहाने, जिस तरह कतारबद्ध वे लोग बैठे थे, उससे यह भी अहसास हुआ कि मुंबई के लोग कितने अनुशासित है। अत: उन्हें देख मेरे  दिमाग में  थोड़ा सा पका आपके समक्ष पेश है ;


लड़कपन बिगड़ा माँ-बाप के लाड में ,
यौवन, संग अंतरंग झाड की आड़ में,
छूं  गए जब  कुछ बुलंदियां प्यार की, 

जोरू आई और लग गए 'जर 'जुगाड़ में।  

खैर, इसी का तो नाम जिंदगी है।  

Friday, November 26, 2010

'कर' खा गए !

भूखे-नंगे,लालची,हरामखोर 
परजीवी, 'पेट-भर' खा गए,
जो 
मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

टूजी, सीडब्ल्युजी, बैंक,एलआइसी,

आदर्श 'हर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कोड़ा, कोयला,क्वात्रोची,

आइपीएल,चारा और हवाला,
तेलगी, हर्षद, केतन, सत्यम, 

दामाद जमीन घोटाला,

और तो और ये 

कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कुल २० हजार खरब खा चुके, 

वुभुक्षित कितना खाते है,
कर्म से तो हैं ही, 

शक्ल से भी चोर नजर आते है,

घोटाले-कर करके 

जुगाली में ही देश  चबा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

Thursday, November 25, 2010

स्वतंत्र होना शेष है!


THURSDAY, MARCH 26, 2015

अग्नि-पथ !

लुंठक-बटमारों के हाथ में, आज सारा देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है !
सरगना साधू बना है, प्रकट धवल देह-भेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

भ्रष्ट-कुटिल कृत्य से, न्यायपालिका मैली हुई,
हर गाँव-देश  दरिद्रता व भुखमरी फैली हुई !
अविद्या व अस्मिता, अभिनिवेश, राग, द्वेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

राज और समाज-व्यवस्था दासता से ग्रस्त है,
जन-सेवक जागीरदार बना,आम-जन त्रस्त है !
प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही,फिरंगी औपनिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

शिक्षित समझता श्रेष्ठतर है,विलायती बोलकर,
बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां नीर भी, बेचती तोलकर,
देश-संस्कृति दूषित कर रहा,पश्चमी परिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

Friday, November 19, 2010

शायद !

फैसले तमाम अपने कल पर टाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीनों में जो पाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

परदों, मुखौटों में छुपकर के शठ-मक्कार,
कर न पाते इसतरह हमारी ही पीठ पर वार,
सिंहासन, गांधारी-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

जन उभय-निष्ठ, उलझा हुआ है अपने में,
मुल्ले,पण्डे, पादरी लगे है स्वार्थ जपने में,
अगर आवाम के मुँह पर पड़े ताले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

समाज, जाति-धर्म में इतना बँटा न होता,
हिंदोस्तां अपना जयचंदों से पटा न होता,
गर नेता-नौकरशाहों के दिल काले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

सियासत के पंकमय हमाम में सब नंगे है,
कोयले की दलाली में सबके सब बदरंगे है,   
ओंछे पंक में धसे नीचे से ऊपर वाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

अमुल्य वोट अपने अविवेकित डाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

Thursday, November 4, 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !

आप सभी ब्लोगर मित्रों, पाठकों और शुभचिंतको से क्षमा चाहता हूँ कि पिछले १५ दिनों से चिकनगुनिया से गर्सित होने की वजह से इस तरफ जिन्दगी की जद्दोजहद जारी है, खैर,शायद इसी का नाम जिन्दगी है !
सहनशीलता का गुण चराग से सीखने की कोशिश में लगा हूँ !

दीपावली के इस पावन अवसर पर आप सभी को और आपके समस्त पारिवारिकजनों को अपने और अपने परिवार की तरफ से दीपावली की ढेरों शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ !

Saturday, October 2, 2010

गांधी जयन्तीपर एक प्रयास !

सर्वप्रथम गांधी जयन्ती  और शास्त्री जयन्ती पर सभी ब्लोगर मित्रों, पाठ्कों और सभी देशवासियों को हार्दिक शुभ-कामनायें और देश के इन सपूतों को श्रद्धांजली ! आज सुबह एक काव्यात्मक पोस्ट लगाई थी, लेकिन बाद मे रियलाईज हुआ कि मैं इस ब्लोगिंग के चक्कर मे पडकर न सिर्फ़ लेखन के क्षेत्र अपितु व्यावहारिक जीवन मे भी जरुरत से ज्यादा नकारात्मकता की ओर झुकता जा रहा हूं! आज इन महान सपूतों का जन्मदिन भी श्राद्ध मास मे आया है तो और कुछ नही तो हम सच्चे मन से कम से कम इन्हे श्रद्धा सुमन तो अर्पित कर ही सकते है ! अत: मैने अपनी वह पोस्ट डीलीट कर दी ! साथ ही इस पुण्य-पावन अवसर पर यह निश्चय करता हूं कि आइन्दा जहां तक हो पायेगा, सकारात्मक लिखने की कोशिश करुंगा अन्यथा कुछ लिखुंगा ही नही !

अब इस पावन-पवित्र अवसर पर सभी से दो बातें कहुंगा या फिर अपील करना चहुंगा;

पहला यह कि मंदिर-मस्जिद को अपने तुच्छ अहम से जोडकर हम हिंदुस्तानियों ने आपस मे ही एक दूसरे का बहुत कत्लेआम कर लिया ! मंदिर और मस्जिद दोनो ही उपरवाले के स्मरण के लिये हम लोग इस्तेमाल करते है, अगर बाबर मूर्ख था, तो इसका यह मतलब कदापि नही निकलना चाहिये कि हम आगे भी वही मूर्खता करते जाये ! अब जब कोर्ट का फैसला आ ही गया है और इस बात के हिंट मिल गये है कि बाबरी मसजिद के नीचे कोई स्ट्रक्चर दबा पडा है, तो मैं दोनो पक्षों से यह अपील करुंगा कि सुप्रिम कोर्ट जाकर विवाद को बढाने की वजाये, मिल बैठकर अब उस जमीन के टुकडे को पुरातत्व विभाग के हवाले किया जाये, और खुदाई के बाद यदि उसके नीचे कोई मंदिर का प्राचीन ढांचा मिले तो उसे तोडकर नया मंदिर बनाने के वजाये राष्ट्रीय धरोहर के रूप मे रखा जाये ! जो हमारी आने वाली पीडियों को यह दर्शायेगा कि पुरातन काल मे विदेशी आक्रांताओ ने कैसे इस देश की संस्क्रति को मिटाने की कोशिश की! और उस जगह से कुछ हटकर किसी उप्युक्त जगह पर भब्य मंदिर भी बने और मस्जिद भी, और इन दोनो को बनाने का काम हिन्दु संगठन करे, इस बात की घोषणा हिन्दुओं को खुदाई से पहले करनी चाहिये कि वे अयोध्या मे खुद मस्जिद बनायेगे, ताकि आगे चलकर साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता की यह एक मिशाल बन सके ! अगर नही सुधरे तो आने वाली शिक्षित पीढियां कभी हमे माफ नही करेंगी, और जरा सोचिये कि यदि सुप्रिम कोर्ट भी हाई कोर्ट के फैसले को ही कायम रखता है, और उसके बाद सचमुच मे उसके नीचे भगवान राम का प्राचीन मंदिर मिलता है, तो कहीं मुह दिखाने लायक नही रहोगे तब !

दूसरी अपील, कल से हमारे राष्ट्रीय गौरव के लिये कुछ समय पहले तक चुनौती बने कौमनवेल्थ खेलों का कल से दिल्ली मे शुभारम्भ है! भूतकाल मे जो हुआ सो हुआ, लेकिन अब यह संतोष की बात है कि कुछ दिनो से सब कुछ ठीक चल रहा है! किसी विदेशी खिलाडी के किसी तरह की शिकायत के कोई संकेत नही है ! आईये, हम सभी मिलकर इसे एक सफ़ल आयोजन बनने का अपने व्यक्तिगत स्तर पर जो हो सके प्रयास करे ! कल जब उद्धघाटन समारोह हो तो दिल्ली ही नही बल्कि पूरा देश इस जश्न से सरागोश मिले ! घर, सड्क, शहर सभी कौमनवेल्थ के रंग मे रंगा मिले ! और मिलकर हम भारतवासी इस खेल के एक सफ़ल आयोजन बनने की भगवान से प्रार्थना करें !

एक बार पुन: गांधी जयंति की हार्दिक शुभकामनाये !

Friday, October 1, 2010

यूँ तो मसला कुछ भी न था, किन्तु माथुर साहब थे कि.... (व्यंग्य) !

आजादी के बाद देश की करीब ५६५ रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने हेतु हमारे देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, लोह पुरुष सरदार पटेल ने जी-जान से अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी ! हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब को छोड़, जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी रियासत रह गई थी , जहां माथुर साहब की अपनी निजी उच्च आकांक्षाओं के चलते पटेल साहब के सारे प्रयास विफल गए ! २० अक्तूबर १९४७ को जब उत्तरी कश्मीर की तरफ से अनेक पठानी आताताइयों (कबालियों ) की मदद से पाकिस्तानी सेनायें कश्मीर में घुसी और माथुर साहब के पिछवाड़े पर जब जोर की पडी, तब जाकर माथुर साहब मदद को चिल्लाए ; परिणामत: करीब ३००० से अधिक भारतीय सैनिकों को अपने प्राणों की तत्काल आहुती देनी पडी, और तब से आज तक हर साल सेकड़ों की तादात में देते आ रहे है !

अब आ गया १९४९, बताते हैं कि मेरे ही जैसे कुछ सिरफिरे हिन्दुओं ने अपने हक़ के लिए लड़ते हुए उस खंडहर में भगवन राम और सीता की मूर्तियाँ रख दी थी, जो सदियों से वीरान पड़ा था, जहां कोई नमाज अता नहीं की जाती थी, और जिसे बाबर ने भगवान् राम के मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर बनाया था! यूँ तो मसला कुछ भी न था, क्योंकि दुनिया जानती थी कि अयोध्या भगवन राम की जन्मस्थली है, उसी वक्त आपस में मिल बैठकर विवाद को सुलझाया जा सकता था, किन्तु माथुर साहब थे कि उन्हें तो अपनी दूकान चलानी थी ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि जो निर्माण सामग्री वे बेच रहे है, वह हिन्दू ने खरीदी या फिर मुसलमान ने ! अगर हम होते और हमें यह मालूम पड़ जाता कि ग्राहक जो सामग्री खरीदकर ले जा रहा है, उससे वह किसी के प्लाट पर जबरन कब्जा करके अपना ढांचा बनाएगा तो शायद उसे हम वह सामग्री कभी नहीं बेचते , ताकि वह निर्माण आगे चलकर किसी पर कहर न ढाए ! साथ ही उन्हें यह भी समझाते कि भाईसहाब जिस जमीन पर आप कब्जा कर यह निर्माण कर रहे है, एक दिन उसका मालिक अगर अपनी जमीन वापस मांगेगा तो आप क्या करेंगे ? लेकिन माथुर साहब को तो बिना यह सब देखे सिर्फ और सिर्फ अपनी दुकानदारी की चिंता थी; अत: वे सेक्युलर बनकर दुकान चलाते रहे ! नतीजन, देश को कई दंगे झेलने पड़े ! १९९२ हुआ, मुंबई के बम विस्फोट हुए, हजारों लोग मारे गए, देश की प्रगति अवरुद्ध हुई और अब घूम फिरकर १९४९ पर ही आ गए! इसे कहते है लौट के बुद्धू घर को आए, तभी प्यार से निपटा लिया होता तो...........किन्तु माथुर साहब थे कि ...... !

अब आया १९५५, श्री लक्ष्मण सिंह जंगपांगी चीन की सामरिक गतिविधियों पर गहरी पैनी नजर जमाये हुए थे, वे पहले भारतीय व्यापार अधिकारी थे, जिन्होंने चीन के इरादों की जानकारियाँ 1955 में भारत सरकार को भेजकर बता दिया था कि चीन अक्साइचिन से होकर सड़क बना रहा है, और उसके इरादे नेक नहीं लगते ! दिल्ली में बैठे माथुर साहब ने उनकी रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कि यह रिपोर्ट निहायत बेहूदा है ! इस अनदेखी से चीन ने अक्टूबर 1962 में भारत पर आक्रमण कर लद्दाख-नेफा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया ! इस युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 3968 बंदी बनाये गये, 1696 लापता रहे!(वो भी फिर कभी नहीं लौटे, अभी हाल में हिमांचल के रहने वाले ऐसे ही एक लापता सैनिक का शव ४८ साल बाद मिला ) युद्ध के बाद लक्ष्मण सिंह जंगपांगी की रिपोर्ट पर भारत सरकार का ध्यान जाना स्वाभाविक था, फिर उस रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा के उपाय सुदृढ़ किये गये, और श्री जंगपांगी को ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया! यानि माथुर साहब के पिछवाड़े पर एक और.... उसकी वजह यह थी कि जब सीमा पर तैनात कमांडर ने वहां से माथुर साहब को दिल्ली फोन कर बताया था कि साहब वे (चीनी सैनिक) हमसे करीब १००० मीटर की दूरी पर आ गए है, क्या हम फायर खोल दे ! माथुर साहब इधर से बोले 'नो फायर, हिन्दी चीनी भाई-भाई ' आदत से मजबूर जो ठहरे , साथ ही उनका अपना लक्ष्य तो सिर्फ अपनी दूकान चलाना था, यही सोच रहे थे कि अगर चीनी सैनिक सामने आकर भारतीय सैनकों को मार भी देंगे तो इनका क्या बिगड़ेगा, वो तो दिल्ली में बैठे थे ! कमांडर ने फिर फोन किया, सर, वे हमारे बिलकुल करीब आ गए है, फायर खोल दे ! माथुर साहब फिर बोले, नो फायर, हिन्दी चीनी भाई भाई .... और फिर क्या हुआ, सभी जानते है!

फिर १९६५ आया ,७१ हुआ, उधर से कमांडर ने पूछा साहब, हम लाहौर से आगे बढ़ गए है, अदला-बदली में पाक अधिकृत कश्मीर ले ले वापस ? माथुर साहब ठहरे भले किस्म के इन्सान, उन्हें तो अपनी दुकानदारी चलानी थी और ग्राहक बनाए रखने थे ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह हिन्दुस्तानी है या फिर पाकिस्तानी ! बोल दिया , नहीं हम शान्ति के दूत है, वापस आ जाओ ! उनके ९१००० कैदियों को भी लौटा दो, वे अगर हमारे देश के बंदी सैनिकों को न लौटाएं तो कोई बात नहीं, देश में वैसे भी आवादी बहुत है !

अब आ गया १९९९, कारगिल में एक कश्मीरी गड़रिये बालक द्वारा पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी दिये जाने तक पाकिस्तान की सात बटालियनें वहाँ की चोटियों पर मोर्चा संभाल चुकी थी ! माथुर साहब दिल्ली में बैठे यही कहते रहे कि वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है, सब ठीक-ठाक है, परिणामस्वरूप देश ने अपने करीब ६०० जांबाज खोये, युद्ध से पहले कई कमांडरों ने माथुर साहब को यह उदाहरण देकर सचेत भी किया था, कि एक पिद्दी सा पाकिस्तान हमारी तरफ आंखे तरेर रहा है ! ठीक है हमें शांति का पथ नहीं छोडना चाहिए, लेकिन पड़ोसी को हमेशा यह अहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम भी काफी दमखम रखते है , और मुहतोड़ जबाब दे सकते है! अगर ऐसा नहीं करोगे तो दूसरा आपको कमजोर समझता है , और तो और मोहल्ले का कबाड़ी भी घर के आगे से गुजरते हुए नसीहत दे जाता है कि माथुर साहब, सड़क में पानी फेंककर उसे गीला मत किया करो ! लेकिन माथुर साहब ठहरे पक्के बनिया, उन्हें तो अपनी दुकानदारी से मतलब था और इस बात से उन्हें क्या फर्क पड़ने वाला था, उनकी बला से भले ही कबाड़ी भी धमकी दे जाए, मगर उनकी दुकान से कभी-कभार सामान खरीद ले, बस ! आत्मसम्मान गया भाड़ में !

इस बीच संसद और मुंबई पर भी हमला हुआ, लेकिन माथुर साहब मस्त होकर अपनी दुकानदारी चलाते रहे ! मुझे याद है कि बहुत साल पहले जब पूर्व रक्षामंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडेज ने चेतावनी दी थी कि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है, तो माथुर साहब, उनकी बात पर जोर से हँसे थे और उनके बयान को बेहूदा बताकर यह कहा था कि वे हमारे पड़ोसियों से देश के रिश्ते बिगाड़ना चाहते है ! मगर अब वही माथुर साहब चिलपों मचाने लगे है जब चीन ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है ! उन्हें भी अपनी दुकानदारी खतरे में नजर आती है ! शांति किसे नहीं अच्छी लगती, मगर चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की हकीकत को आखिर कब तक नजरअंदाज करोगे ? अबके तो माथुर साहब यह भी पक्का माने कि भले ही वो दिल्ली में बैठे हो लेकिन जिस दिन होगा तो माथुर साहब का भी नंबर लगेगा ! और अगर ऊपर वाले की कृपा हुई तो बौडर पर तैनात हमारे सैनिकों का नंबर तो बाद में आयेगा, दिल्ली के वातानुकूलित कमरे में बैठे माथुर साहब का नंबर पहले लगेगा ! भाटिया साहब , पूछ रहे थे कि आपके कल के लेख का क्या हुआ ? तो भाटिया साहब, मैंने वह बेहूदा लेख ब्लॉग से निकाल कर सुरक्षित रख दिया, कभी जरुरत पडी तो फिर पोस्ट करूंगा, क्योंकि मुझे भी लगा कि कोर्ट के फैसले से कुछ अति उत्साहित होकर मैंने हडबडी में वह लिख दिया है , इतनी जल्दी नहीं मचानी चाहिए थी, क्योंकि शांति बनाए रखने का ठेका माथुर साहब के पास था! मुझे, एक और सम्मानित माथुर साहब की बात अच्छी लग गयी थी ! अब तो यही दुआ करूंगा कि देश में अमन चैन बना रहे, देश खूब प्रगति करे बस, अदालती फैसलों में तो फेर बदल होता ही रहता है!

Monday, September 27, 2010

अद्भुत खेल !

इधर जोर-शोर से
तैयारियां चल रही थी 
फाइनल टचिंग की,

सरकारी स्तर पर
और उधर, 
खेल गाँव में
सांप जी लेटे हुए थे,
एक अफ्रीकी ऐथेलीट के बिस्तर पर।

अफ्रीकी ऐथेलीट
उसे देखकर बोला,
ये तो भैया मेरे साथ
सरासर रंग-भेद है,
मुझे भी लगता है
कि अबके इस
कॉमन वेल्थ के खेल में कोई बड़ा छेद है।

तभी रूम अटेंडेंट 

दौड़ा-दौड़ा 
उसके पास जाकर बोला,
नहीं भैया जी,  अबके अद्भुत
ये खेल निराले है,
पांच साल में 

सत्तर हजार करोड़ खर्च कर ,
हमने सांप और संपेरे ही तो पाले है। 

Saturday, September 25, 2010

नकारात्मक सोच !

नकारात्मक ख़बरों के लिए कुछ बिके हुए भारतीय मीडिया की तो मैं नहीं जानता, मगर मुझे भी मेरे कुछ दोस्त यह सलाह देते है कि मैं बहुत ज्यादा नकारात्मक लिखता हूँ। मैं उनकी बात को सिरे से नकारता भी नहीं, क्योंकि मैं कोई सतयुगी साधू-महात्मा नहीं ( कलयुगी तो ज्यादातर चंद्रास्वामी के भक्त है ) । मगर मेरा एक मासूम सा सवाल हमेशा रहता है कि वैसे तो मेरा भी मन सकारात्मक लिखने का करता है मगर जब आपके आसपास सभी कुछ नकारात्मक हो तो आप सकारात्मक सोचने की उम्मीद कैसे कर सकते है, जब तक कि अगला अपनी क्रियाशैली न बदल ले ?( यानि खुद भी नकारात्मक करके सकारात्मक बनने का ढोंग रचें )

समयाभाव के कारण बहुत लंबा नहीं लिखूंगा, मगर एक वाकये से अपनी इस नाकारात्मकपन का जस्टिफिकेशन देना चाहूँगा।
मैं मूलत: उत्तराखंड से हूँ , स्वाभाविक है कि मेरे बहुत से करीबी उत्तराखंड में है, जिनसे मेरी रोज बात होती रहती है। दुनिया जानती है कि इसबार मानसून ने उत्तराखंड में क्या कहर बरपाया है। मगर हम दिल्लीवासी नहीं जानते, क्योंकि हम तो कॉमनवेल्थ गेम की तैयारियों में लगे है, उन गेम की जिसने पहले ही देश के माथे पर एक बड़ा कलंक लगा रख छोड़ा है। मैं जानता हूँ कि हमारे देश के ज्यादातर नेता तो इस कदर बेशर्म है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ पैसा कमाना है। कॉमन वेल्थ नहीं तो ड्रेनेज सिस्टम ही सही, कमा लेंगे, लेकिन मुझे अफ़सोस इस बात का है कि हमारे ज्यादातर हिन्दुस्तानी इनसे बेहतर नहीं।

पचास रूपये कप चाय, यह मत सोचिये कि उत्तराखंडी मौके का नाजायज फ़ायदा उठा रहे है । तीर्थयात्रियों से एक कप चाय की कीमत में, वे कम से कम हम दिल्लीवासियों से बेहतर ईमान के लोग है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे ऊँची नीची पहाडी पगडंडियों पर कई किलोमीटर पैदल चलकर उन यात्रियों के चाय का इन्तेजाम कर रहे है। साथ ही उन्हें ११० रूपये कीलो आलू और १३० रूपये कीलों प्याज खरीदना पड़ रहा है , क्योंकि पिछले १० दिनों से सभी सड़क मार्गों के टूट जाने से माल की सप्लाई ठप्प है । और यह पता कहाँ हो रहा है? उस मुख्य सड़क पर जिसको मेनटेन करने का जिम्मा केंद्र द्वारा संचालित उस सीमा सड़क संघठन के जिम्मे है जो अपनी लाख कोशिशों के बावजूद भी सड़क नहीं खोल पाया क्योंकि वह भी कल-पुरजो की कमी से जूझ रहा है। क्योंकि देश के ७०००० करोड़ रूपये तो आपकी सरकार ने दिल्ली में लगा दिए । हजारों यात्री भूखे प्यासे पिछले १० दिनों से उत्तराँचल की ठण्ड में सड़कों पर रात गुजार रहे है। हमारे प्रधानमंत्री जी, जब देश की नाक़ कट चुकी, देशी और अन्तराष्ट्रीय मीडिया की वजह से तब जाकर चेत रहे है, आज तक क्या सोये थे ? देश के हर नागरिक ने टैक्स देकर इन्हें यह आयोजन करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, अब अगर ये ठीक से नहीं अपनी जिम्मेदारी निभा पाए तो क्या प्रधानमंत्री की इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं बनती, जो अब जाके वे खुद को भला मानुस साबित करना चाहते है ? और आप मुझे कहते है कि सकारात्मक सोच रखो ???????????
इन लिंकों पर जरूर एक नजर डालियेगा;
हम क्या सोचकर सकारात्मक सोच रखे ?देशवासियों ने अपने धन का हिस्सा इस आयोजन के लिए टैक्स के तौर पर दिया, दिल्लीवासियों ने पिछले पांच साल से मुसीबतें उठाई, उसके बाद भी आज देश की जो थू -थू हो रही है उसका जिम्मा कौन लेगा ? सी एन एन की साईट पर जो कुछ लोगो के रिमार्क कॉमन वेल्थ के सिलसिले में है उनमे से एक यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ;

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aTrollsTroll what idiots decided to have the games in this dumpster of a country? 8 minutes ago | Like | Report abuse
svvansong Games will go on..throwing in two million children to clean up the village and venues, will also depute few thousands on clapping and trying kill dengue carriers. Should be done in next couple of days and please don't worry about the security..after creating much hype regarding security and safety t... more
Games will go on..throwing in two million children to clean up the village and venues, will also depute few thousands on clapping and trying kill dengue carriers. Should be done in next couple of days and please don't worry about the security..after creating much hype regarding security and safety threats, it was decided to put additional security through one of Kalmadai's friend's security firm. Bright side is that there wont be any complaints since no one is expecting anything now.
Can't do much about the falling buildings though (shouldn’t really complaint since these are built by 7-10 years old kids) but if someone gets hurt, we'll blame it on Pakistan. Can't care less about countries and athletes pulling out..we’ll win all the medals ourselves.
less
24 minutes ago | Like (1) | Report abuse

Friday, September 24, 2010

अपेक्षा !

मुझे
न जाने

कभी-कभी

 ऐसा  क्यों 

लगता है कि

 अब तो बस इस

भरतखंड का तभी

असल विकास होगा,

 जब बड़ी-बड़ी मछलियों

और मगरमच्छों की बस्ती,

नई दिल्ली-१ से उफनते हुए

     कभी जमुना जी का निकास होगा।

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कोसी की कसम !
यमुना जी, आप सुन रही हैं न ?

Thursday, September 23, 2010

शर्म के मायने !

भगवान् का शुक्रिया अदा कीजिये कि "कॉमन वेल्थ" के नाम पर आज सुबह से अभी तक भ्रष्टों द्वारा बिछाई गई देश के करदाता के खून पसीने की रकम का कोई हिस्सा सरसरी तौर पर टूटकर या ढहकर बेकार नहीं गया। वो कह रहे है कि गेम्स विलेज (खेल गाँव ) खिलाडियों के रहने लायक जगह नही है। सडकों पर इंद्रदेव के कोपभाजन की वजह से बड़े-बड़े गड्डे पड़े है।नाक के नीचे का एक नया बना फूटओवर ब्रिज टूट्कर गिर गया है। नेहरु स्टेडियम मे जहां आज से 09 दिन बाद खेलो का उद्धघाटन होना है, फाल्स सीलिंग गिर गई है। खिलाड़ियों के लिए बिछाये बिस्तरों पर कुत्ते आराम फरमा रहे है। सड़कों पर पिछले पांच सालों से खेलों के नाम पर किये जा रहे निर्माण की वजह से पहले से पके बैठे एक आम दिल्लीवासी का चलना दुभर हो गया है। सुरक्षा के नाम पर आतंकवादी खुले सांड की तरह घूम रहे है। विदेशी चैनल वाले विस्फोटक लेकर या यहाँ खरीदकर स्टिंग ओपरेशन कर रहे है और तब जाकर कोई एक-दो नहीं पूरे १० बैरिकेड खेलगांव के गेट के आसपास लगा दिए गए है। जिनपर सुबह से शाम तथा शाम से रातभर तक खड़े-खड़े पहरा दे रहे पुलिस वाले दिन भर बारिश में भीगकर बीमार पड़ रहे है, क्योंकि देश के कुल ७०००० करोड़ रूपये की ऐसी-तैसी करने वालों के पास अंत में इतने भी पैसे नहीं बचे कि इन सुरक्षाकर्मियों के लिए कोई बूथ वहाँ पर बना सके, ताकि बारिश और मच्छरों से वे अपना बचाव कर पायें।

खेलों के नाम पर देश की साख को वैसें तो बट्टा बहुत पहले ही लग चुका है, इस देश के करोडों करदाताओं के पैसे को पहले ही गटर मे डाल दिया गया है, लेकिन हमारे इसी समाज मे पनपित कुछ बेशर्म अभी भी यह मानने को कदापि तैयार नही कि यह देश के लिये एक शर्म की बात है। जबकि मेरा यह मानना है कि यदि कुछ बाते अगर इन्सान की औकात से बाहर की हो तो उस केस मे अपनी असमर्थता जता देना ही सबसे बेहतर बुद्धिमानी कही जाती है। मेजवान अगर समझदार हो तो वह मेहमान से यह कहने मे तनिक भी नही हिचकिचाता कि हे अतिथि ! मेरे कमजोर नेतृत्व की वजह से परिस्थियां ऐसी बन गई है कि आपका आवाभगत मैं पूरे सत्कार के साथ कर पाने मे असमर्थ हू, और मेरी कमियों की वजह से बहुत से जयचन्द इस देश मे पल-बढ गये है, जिनकी वजह से यह कुव्यवस्था फैली है, और जिनपर मेरा कोई नियन्त्रण नही।

कभी-कभार इंसान जब तक किसी अनुभव से खुद नहीं गुजरता उसे किसी बात का अहसास नहीं हो पाता, लेकिन जब उसे यह अहसास होता है बहुत देर हो चुकी होती है। मैं कल-परसों टूर पर था और वापसी में मेरे मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो गई थी क्योंकि मैं अपने सैमसंग फोन का चार्जर ले जाना भूल गया था। अब तलाश शुरू हुई पब्लिक फोन की, आपको आश्चर्य होगा यह जानकार कि विश्व प्रतियोगिता की दावेदारी करने वाले इस देश के एयरपोर्ट पर एक भी पब्लिक फोन बूथ नहीं है, जहाँ से इन परिस्थितियों में कोई यात्री अपने ड्राइवर या फिर घरवालों से बात कर सके। और आजकल कोई दूसरा व्यक्ति भी किसी अनजाने व्यक्ति को इन परिस्थितियों में एक फोन करने के लिए अपना फोन नहीं देता ।

यह खबर आने पर कि अमेरिका का मुल्यांकन है कि भारत, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी बड़ी शक्ति बन गया है, कुछ विभूतियों द्वारा इन तथाकथित कुछ बेशर्मों के साथ मिलकर जश्न मनाया जाता है। यूँ तो वह कौन सा नीच इन्सान होगा जो यह न चाहे कि उसके देश का नाम दुनियांभर मे ऊपर हो, दुनियां की गिनी-चुनी हस्तियों मे शुमार हो जाये उसके देश की हस्ती भी। लेकिन कडवी सच्चाइयों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अमेरिका की इस घोषणा को कि भारत दुनिया की तीसरी महाशक्ति बन गया है, हमें इन अमेरिकियों द्वारा हमारा उपहास उड़ाने जैसी बात के तौर पर लेना चाहिए। Where every section is taken care of, where every penny every action can be accounted for and justice dispensed as early as possible is called superpower.

कडवी सच्चाई यह है कि एक खास धर्म के प्रचारक अपनी कुटिल अपेक्षाओं के तहत एक सोची समझी रणनीति के जरिये वह सब हासिल करने मे जुटे है, जो वह आजादी के बाद पचास सालों मे नही कर पाए थे। कारण साफ़ है कि इस देश की सत्ता के वर्तमान समीकरण उनके अपने छिपे एजेंडे के लिए सबसे अनुकूल है और अब उन्हें इस बात का डर सताने लगा है कि कौमनवेल्थ का खेल बिगड़ने की वजह से कहीं उनकी अनुकूल सरकार को अगर जनता सत्ता से बाहर फेंक देती है तो इनका बना बनाया खेल बिगड जायेगा । इसलिये इस आशंका पर भी विचार किया जाना आवश्यक है कि पश्चिम की एक ताकतवर लौबी ने यहाँ के मतदातावों को फूक में चढ़ाकर काबू मे रखने का यह नया शिगूफा छोडा हो, ताकि इन्हे लगे कि देश मे सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, और देश वास्तव मे प्रगति कर रहा है। जरा इस कौमन वेल्थ की थू-थू का समय और अमेरिका की इस घोषणा के समय पर गौर फरमाए! अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर यह आयोजन ठीक-ठाक निपट भी गया तो क्या हम उस अन्तराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को हासिल कर पायेंगे, जो हम भ्रष्ठाचार की घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के प्रचार/ दुष्प्रचार की वजह से गवां चुके ?

Saturday, September 18, 2010

उलझन !





लगातार
बरसती ही जा रही
सावन की घटाएं हैं ,
बिखरी पड़ी 

प्राकृतिक सौम्य छटाएं हैं ।
नतीजन 

जीवन की हार्ड-डिस्क मे
कहीं नमी आ गई है,
ख़्वाबों की प्रोग्रामिंग सारी
भृकुटियाँ तन रहीं हैं,
हसरतों की टेम्पररी फाइलें भी
बहुत बन रही है।
समझ नही आ रहा कि रखू,
या फिर डिलीट कर दू,
'फ़ोर्मैटिंग' भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !

ख्वाइश !



मैंने कब ये चाहा 
कि मैं भी
बहुत बड़ा 'रिच' होता,
मेरी तो बस, 
इतनी सी ख्वाइश थी
ऐ जिन्दगी,
कि तुझमे भी एक
ऑन-ऑफ का स्विच होता,
जिसे मैं मन माफिक
जब 'जी' में आता,
जलाता और बुझाता।  

Friday, September 17, 2010

शिकायत ऊपरवाले से

हे ऊपरवाले  !
इस दुनिया में,
स्वार्थीजन आपको
खूब अलंकारते है,
भगवान्,ईश्वर, अल्लाह, रब, खुदा
गॉड और न जाने 

किन-किन नामों से पुकारते है।  

निःसंदेह आप खेवनहार हो,
इस दुनिया के पालनहार हो,
खूब लुटाते हो अपने भक्तों पर,
आपकी कृपा हो तो घोड़े-गधे भी 

बैठ जाते है ताजो-तख्तों पर।  

मगर एक बात जो
मुझे अखरती है , माय बाप !
सिर्फ मेरी ही बारी
क्यों कंजूस बन जाते हैं आप ?

मुझे बताओ, ऐ ऊपर वाले !
मुझमे ही सारे गुण तुमने
पाइरेटेड क्यों डाले?
अरे, कम से कम 

लेबल तो निकाल देते,
कुछ नहीं था, तो यार, 

एंटी-वायरस तो ओरिजिनल डाल देते। 

Wednesday, September 15, 2010

इमेज !

यह आज मेल से मिला था, हिन्दी रूपांतरण मनोरंजनार्थ पेश है ;

यूपी से बिहार के राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगे तगड़े जाम में एक ड्राइवर फंसा हुआ था । आधा घंटा गुजरा, एक घंटा गुजर गया, लेकिन ट्रैफिक था कि हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर अचानक कुछ लोग आये और उसकी गाडी की खिड़की पर ठक-ठक किया ।
उस ड्राइवर ने अपनी गाडी की खिड़की का शीशा उतारा और पूछा- क्या चल रहा है भाई, ये ऐसा जाम क्यों लग गया ?
वे बोले कि देश के कुछ विख्यात नेतागण सड़क मार्ग से पटना जा रहे थे, तो कुछ नक्सलियों ने उनका अपहरण कर दिया है।
और अब वे नक्सली इनको छोड़ने का प्रति नेता १० लाख रूपये मांग रहे है, और साथ ही धमकी भी दे रहे है कि अगर तुरंत पैसों का इंतजाम नहीं किया तो वे उनके ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगा देंगे। इसलिए हम यहाँ एक-एक गाडी वाले के पास जा रहे है ताकि कुछ कलेक्शन कर सके।
अच्छा ये बतावो कि औसतन कितना दे रहे है लोग ? ड्राइवर ने उत्सुकता से पूछा।

ज्यादातर लोग तकरीबन पांच लीटर तो दे ही रहे है !!!!!!!

Friday, September 10, 2010

कुत्ते से करिये मालिक की पहचान !


दिये गये शीर्षक पर कुछ लिखने से पहले एक छोटी सी भंडास निकालना चाहुंगा. आप घबराइये नही, यह भंडास अथवा बद्दुआ मैं उन निर्लज बेशर्मो पर निकाल रहा हूं जिन्होने आम दिल्ली वालों का जीना पिछले एक दशक से दुभर कर रखा है, विकास के नाम पर। कभी फ़्लाईओवर के नाम पर, कभी सडक चौडीकरण के नाम पर, कभी जल निकासी के नाम पर और कभी कौमनवेल्थ के नाम पर। आजकल तो हालात ये हैं कि सुबह से शाम तक की बारह घंटे की दिनचर्या मे चार घंटे तो सिर्फ़ सड्कों पर ही गुजारने पड रहे है, कौमनवेल्थ की रिहर्सल के नाम पर पर लगने वाले जाम की वजह से । देश की तीस हजार करोड की कौमन वेल्थ को तो इस देश के ये कुछ भस्मासुर चट कर गये और ऊपर से धमकी आम जन को कि अगर फ़लां-फ़लां लेन मे घुसे तो.........समझ मे नही आता है कि ये लोकतंत्र है या फिर नादिरशाही ? इन चंद भस्मासुरों ने बिके हुए मीडिया संग मिलकर क्या-क्या सब्जबाग नही दिखाये थे इन दिल्ली वालों को, मसलन पांच गेयर तो छोड दीजिये ये तो कह रहे थे कि अगर गाडी मे छ्टा गेयर भी लगा दिया गया तो उस पर भी गाडिया दौडेगी। यमुना के नीचे से ठां से रेल निकलेगी और सीधे स्टेडियम मे ही जाकर रुकेगी......औटो की जगह उडन खटोले होंगे, ब्लु-लाईन की जगह और पता नही क्या-क्या होंगे। दिल्ली स्वर्ग नजर आयेगी ....... बला....बला..... ।

और हकीकत मे हालात ये है कि हर जगह पैबंद लगाये जा रहे है। बिके हुए मीडिया की मदद से ब्लू लाइन बसें तो सड्क से बाहर करवा दी, आर्थिक विकास दर का दिखावा करने के लिये भूखे-नंगो को भी किस्तों पर वाहन दिलवा दिये और चलने के लिए इनके पास सड़के है नहीं। अरबो रुपये देश के स्वाह करने के बाद जमीनी हकीकत ये है कि आधारभूत ढांचे के नाम पर अब बेशर्मी से लोगो को सलाह दे रहे है कि आप इस दौरान निजी वाहनों की वजाये अधिक से अधिक सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करे, उन वाहनों का जो सडकों से नदारद है। इन्हे तो बस यही दुआ दूंगा कि तुमने हमे तो जीते जी चैन से जीने नही दिया, मगर तुम्हे मरकर भी चैन न मिले।




अब मुख्य विषय पर आता हूं। हालाकि विषय बडा मामूली सा है मगर जो लोग कुत्तों मे रूचि रखते है, उनके लिये है मजेदार। जो लोग कुत्ते पालने का शौक रखते है और अपने घरों मे कुत्ते पालते है, वे शायद इस बात को बखूबी समझते है कि कुत्ते के हाव-भाव बहुत कुछ इन्सानी हाव-भावो से मिलते है। अगर आपको किसी इन्सान के स्वभाव के बारे मे पता लगाना है और अगर उसके घर मे पालतू कुत्ता है,तो आप उस कुत्ते के हाव-भावो पर गौर कीजिये, आपको उसके मालिक के स्वभाव के बारे मे सामान्य जानकारी मिल जायेगी. कुछ एक अपवादों को छोड मेरा अध्य्यन यह कह्ता है कि;
-यदि कुत्ता सरीफ़ है तो समझिये कि मालिक भी सरीफ़ है।
-कुत्ता वफ़ादार तो मालिक वफ़ादार।
-यदि कुत्ता आलसी है तो मालिक एक नम्बर का आलसी मिलेगा।
-यदि कुत्ता काटने को दौड्ता है तो भग्वान बचाये ऐसे मालिक से।
-यदि कुत्ता सिर्फ़ भौंकता बहुत ज्यादा हो तो मालिक की वाचालता पर शक नही होना चाहिये।
-यदि कुत्ता मसखरे बाज है तो मालिक भी चंचल स्वभाव का होगा।
-और यदि कुत्ता गम्भीर स्वभाव का दिखे तो आप समझ सकते है मालिक भी गम्भीर स्वभाव का है।
-यदि चेन पर बंधा हो और सडक पर कोई दूसरा कुत्ता नजर आये तो उस पर काटने को उछलता है, मगर जब खुला छूटा हो और उस वक्त दुम दबा कर चल रहा होता है, तो समझिये कि मालिक चार दीवारी के भीतर शेर बनता फिरता है।
-सिर्फ़ जरुरत पर भौंकता है या काटने को दौडता है तो मालिक समझदार किस्म का मिलेगा।
-घर के अन्दर ही गन्दा कर देता है तो मालिक गंदा है, मगर यदि जब तक उसे बाहर न ले जाया जाये, वह घर मे टायलेट तक नही करता तो मानिये कि मालिक सफ़ाई पसन्द है।
-निर्धारित समय पर ही बाहर ले जाने की जिद अथवा मांग करता है तो मालिक अनुशासनप्रिय है।
-यदि खुद कोई फरमाइश नही करता, अथवा किसी अजनवी के गेट पर आने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नही करता तो मालिक लापरवाह है।
-यह भी नोट करे कि किसी खास वक्त पर मालिक के स्वास्थ्य से मिलती जुलती ही कुत्ते के स्वास्थ्य की भी स्थिति रहती है, कुत्ता कब्ज से परेशान है, लैट्रिग नही कर रहा तो समझिये कि मालिक की भी वही स्थिति है।
-कुत्ते की बनावट से मालिक की पसंद का भी पता चलता है. छोटी नस्ल का कुता यानि घर मे छोटे कद की बीबी, छोटा घर, घर मे छोटे आकार का साजो-सामान, छोटी गाडी इत्यादि, जबकि मध्यम आकार और बडे आकार के डिलडौल कुत्ते का मतलब................... ।
और भी बहुत सी विशेषताये है जो काल और परिस्थितियों के अनुकूल भिन्न-भिन्न है. जैसा कि मैने शुरु मे कहा कि इसमे कुछ अपवाद भी हो सकते है और इस विश्लेषण से किसी सज्जन को कोई ठेस पहुचती हो तो अग्रिम क्षमा याचना। अथ श्री कुत्तापुराण :)

अन्त मे आप सभी को गणेशचतुर्थी और ईद की मंगलमय कामनाये !

Tuesday, September 7, 2010

कोई तन्हा न रहे !



घिर आये है बदरा घने, हो रही तेज बारिश भी,
दिल में इक कसक भी है, लब पे सिफारिश भी।  

शाम ये उल्फत भरी है, कहीं कोई तन्हा न रहे,
मायूस न हो किसी की , छोटी सी गुजारिश भी।  

गुजरें न किसी की शामे उदास, 'मयखाने' में,
दिल में जीने की तमन्ना हो, और ख्वाइश भी। 

सिर्फ खफा रहने से जिन्दगी बसर नहीं होती,
अर्जी में इंतिखाब भी रहे और फरमाइश भी।  

मिलता है हर किसी को हिस्से का ही मुकद्दर,
करें क्यों 'परचेत', तकदीर से आजमाइश भी।  

Sunday, September 5, 2010

सरकारी आंकडे भी भरोसेमंद नही रहे !

सरकार ने माना है कि उसके द्वारा पिछले मंगलवार को जारी इस वित्तीय वर्ष के अप्रैल से जून तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की ८.८ प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से सम्बंधित आंकडो के आंकलन मे गलतियां थी और वह नये सिरे से इनका आंकलन करेगी। यह बात वित्त मन्त्री ने तब मानी जब कुछ वित्तीय समीक्षकों ने इन आंकडो पर यह कह्ते हुए संदेह व्यक्त किया और आलोचना की कि सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मुल्यांकन बाजार मुल्य पर किया।

बाजार मुल्य पर किये गये इस मुल्यांकन मे वस्तुओ के उत्पादन और सेवाओं की लागत सिर्फ़ ३.६५ प्रतिशत आंकी गई है, जबकि वास्तविक तौर पर यह दस प्रतिशत से भी अधिक है। साथ ही यह भी दर्शाने की कोशिश की गई कि इस दौरान देश मे उत्पादों का उत्पादन और उसकी आपूर्ति तो छक के है, मगर कोई इन उत्पादों को खरीदने वाला ही नही है।

यह बात भी यहां उल्लेखनीय है कि अनेक वित्तीय समीक्षक यह मानते है कि हमारे देश मे सकल घरेलू उत्पाद को मापने का पैमाना अन्तर्राष्ट्रीय मानको से भिन्न है और अगर हम ईमानदारी से अन्तर्राष्ट्रीय मानकों का पालन इसकी गणना मे करें तो हमारी यह विकास दर ४ प्रतिशत से भी नीचे है।


अगर आपने इस बात को नोट किया हो तो आपको याद होगा कि जिस दिन ये आंकडे जारी हुए थे, एक तरफ़ तो दुनियांभर के समाचार माध्यमों ने भारत के इस आर्थिक विकास की खबर को प्रमुखता दी थी, मगर वहीं दूसरी तरफ़ जरा-जरा सी बातों पर ऊपर उछलने वाला हमारा शेयर मार्केट इतनी उत्साही खबर के बावजूद नीचे लुड्का था, जो यह इंगित करता है कि हमारे शेयर बाजारों को इस बात की पहले ही भनक मिल चुकी थी कि सरकारी आंकडे गलत है। जो कि इन सरकारी आंकडो पर फिर एक बार संदेह उत्पन्न करता है। दूसरे नजरिये से देखें तो सरकार का यह कहना उसकी पौलिसी के हिसाब से सही लगता है कि गेहूं की भांति
ही अन्य उत्पादो को भी अगर सडने के लिये गोदामों मे छोड दो मगर जनता के लिये उसे ऊंचे दामों मे ही बेचो तो खरीददार स्वत: ही नही मिलेंगे।

योजना आयोग द्वारा सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की समिति ने पिछले साल भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने वालों की आबादी 37 प्रतिशत बतायी थी। गावों में इनकी संख्या 42 प्रतिशत से अधिक थी। ध्यान रखने की बात है कि यह आकड़ा वर्ष 2004-05 का है और तेंदुलकर समिति ने उसी वर्ष की तस्वीर इन आंकडो मे पेश की थी। जबकि ग्रामीण विकास मंत्रालय के हाल के आंकडो पर नजर डालें तो गावों की 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को गरीबी रेखा के नीचे माना जाना चाहिए। साफ है कि २००४ मे एनडीए के सत्ता से हट्ने और युपीए के सत्ता मे आने के बाद देश मे आम आदमी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बद्त्तर हुई है। दूसरे शब्दों मे युपीए के सत्ता मे आने के बाद सुरुआती सालों मे आर्थिक विकास की जो फसल युपीए ने काटी है वह भी एनडीए की ही बोई हुई थी, अन्यथा तो इन सालों मे बदहाली के अलावा देश मे कुछ भी हासिल नही हुआ।

जरा महंगाई के आईने में गरीबी
रेखा के नीचे जीवन जीने वालों की स्थिति का आकलन करिए। जो महंगाई दर एक जमाने मे ३ से ४ प्रतिशत के आस पास झूलती थी वह एक लम्बे अर्से से १० प्रतिशत के नीचे उतरने का नाम ही नही ले रही है। वैसे तो महंगाई का सरकारी आकड़ा स्वयं में एक उपहास का विषय रहा है, किंतु यदि इसी आकड़े की तुलना उस दौर से करें तो इसमे तिगुनी बढ़ोतरी हुई है।

अधिक आयवर्ग के कुछ लोग इस गलतफहमी मे कतई न रहे कि सिर्फ़ उनके द्वारा दिये गये आयकर से ही यह देश चलता है, इस देश के नेता लोग कौमनवेल्थ की बन्दर बांट करते है। पिछले दो दशको की सरकार ने अपने कुटिल राजनैतिक होश्यारी दिखाकर इस देश के हर नागरिक से टैक्स वसूल कर अपनी झोली भरने के नायाब तरीके ढूढ निकाले है। एक गरीब मजदूर जो दिन भर मेहनत करके शाम को १०० मजदूरी पाता है उसमे से दस रुपये परोक्ष कर सरकार की झोली मे भरता है क्योकि इस मजदूरी की रकम से उसने अपनी जरुरत की जो भी आवश्यक वस्तु खरीदनी है, उस पर उसे टैक्स देना पडता है।


कितनी अजीब बात है कि सिर्फ़ लुभावने आंकडे पेश कर दुनिया भर मे अपने आर्थिक विकास और समृद्धि का डंका पीटकर वाहवाही लूटने वाली हमारी ये सरकारे जमीनी हकीकतो को इस तरह नजरअन्दाज करने मे जरा भी शर्म मह्सूस नही करती है। जबकि देश मे मोन्टेक सिहं आह्लुवालिया, रंगराजन, सुब्बाराव मनमोहन सिह और कई बडे-बडे अर्थशस्त्री मौजूद है। सरकार मे बैठे ये लोग यह नही सोचते कि इनकी जरा सी लापरवाही से अथवा जानबूझकर ऐसे हथकंडे अपनाकर ताकि ये अपनी नाकामयाबियों पर पर्दा डालकर लोगो की आंखो मे धूल झोंक सके, खुद की और देश की साख को बट्टा लगता है।
पता नही हममें ऐसी प्रशंसा की आत्ममुग्धता से बचकर नंगी हकीकत को स्वीकार करने की नैतिकता कब आयेगी।

Friday, September 3, 2010

एक लघुतम कथा- मरियल सर्वेसर्वा !

एक देश था, दृढ़, प्रबल, उपायकुशल, साधन संपन्न, सक्षम, साहसी, पराक्रमी, वैश्विक स्तर पर आर्थिक, सैन्य, कूटनीतिक,सांस्कृतिक एवं बौद्धिक , सर्वशक्तिमान के ये जितने पर्याय है, उन सब से परिपूर्ण था वह देश !मगर उस देश का एक दुर्भाग्य यह भी था कि उसने अपने अन्दर गद्दार और कायर निकम्मे भी प्रचुर मात्रा में पाल रखे थे ! वहाँ के कुशल इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने उन्नत किस्म के दिव्यास्त्र, आग्नेयास्त्र दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए बना रखे थे ! देश ने उन अस्त्र-शस्त्रों को चलाने का बटन देश के सर्वेसर्वा के हाथों में दिया हुआ था, और चूँकि सर्वेसर्वा मरियल सा था इसलिए उसे इतनी भर जिम्मेदारी दी गई थी कि वह मौक़ा पड़ने पर सिर्फ बटन दबा दे !



इतना सबकुछ होते हुए भी विडम्बना देखिये कि जरुरत पड़ने पर वह देश अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाया, क्योंकि उसके लोगो ने अपने आयुद्ध भंडारों का जो रिमोट बटन उस मरियल से सर्वेसर्वा को पकड़ा रखा था, ऐन-वक्त पर वह उसे इस्तेमाल नहीं कर सका ! वजह यह थी कि वह सर्वेसर्वा खुद भी रिमोट से ही चलता था, एवं जिसके पास उसे चलाने का रिमोट बटन था, वह कहीं छिपकर यह सब देख आनंदित हो रहा था ! पूर्व में उस देश के भ्रष्ट नेतावों और आदिवासी जंगली प्रजातियों के मिलन से पैदा हुई एक नई नस्लवादी आदमखोर प्रजाति ने वर्तमान में उस देश में आतंक मचा रखा था! देशवासी असहाय बनकर देखते रहे और एक-एक कर उनका ग्रास बनते चले गए और अंत में वो आदमखोर, एक खूंखार राक्षस की भांति एक दिन पूरे देश को खा गए !

इतिश्री !

Thursday, September 2, 2010

बेचारे पाकिस्तानी गधे !








आपने यह खबर तो अब तक सुन/ पढ़ ही ली होगी कि पाकिस्तानी खिलाडियों पर लगे स्पाट फिक्सिंग के आरोपों से नाराज पाकिस्तानियों ने सोमवार को लाहौर में गधों का जुलूस निकाला और जूते , चप्पल और सडे हुए टमाटरों से उनकी धुनाई कर अपने गुस्से का इजहार किया। प्रदर्शनकारियों ने आरोपियों के नाम पर गधों के गले में जूतों की माला भी पहनाई।प्रदर्शनकारियों ने हर गधे के सिर पर कागज चिपकाकर अपने उन सभी महान क्रिकेट खिलाडियों और अधिकारियों का नाम लिखा था, जो हाल में फिक्सिंग के दोषी है । एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि इन खिलाडियों ने देश का सिर नीचा किया है। हम बाढ और आतंकवाद के कारण पहले ही इतनी मुसीबतें झेल रहे हैं और इन खिलाडियों ने हमारी खुशी का मौका भी छीन लिया। कुछ लोगों ने एक गधे के गले में बल्ला तक फँसाकर यह दर्शाने की कोशिश की कि हमारे क्रिकेटर आज किस हाल में पहुँच गए हैं।

आपको बता दूं कि विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में इन गधों को सेक्युलर श्रेणी में रखा गया है, जबकि पाकिस्तान अपने आप को एक पाक-साफ धार्मिक देश मानता है। विभाजन के समय वहाँ इनके जीवित बचने की एक प्रमुख वजह यह मानी गई थी कि जब भी किसी उपद्रवी मुल्ले ने इनसे पूछा कि हे गधों ! तुम बताओ कि तुम हिन्दू हो या फिर मुसलमान? तो ज्यादातर गधों ने बड़ी मासूमियत से यह जबाब दिया था कि मिंयाँ हम ना तो हिन्दू है और न मुसलमान, हम तो सिर्फ गधे है । बस, वहाँ के उपद्रवी मुल्लों को गधों की यह बात भा गई और उन्होंने उन्हें अपना गुलाम बना लिया। तभी से इन गधों ने भी समय-समय पर पाकिस्तान के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा का बखूबी पालन किया है और न सिर्फ दैवीय आपदाओं के वक्त बल्कि हर मौसम में इन पाकिस्तानियों की हाँ में हाँ मिलाई है । अभी हाल में आई बाढ़ में गधों ने भी अपने अनेक प्रियजन खोये, उसके बावजूद ये गधे जी-जान से बाढ़ पीड़ितों तक सहायता सामग्री ले जाने, उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुचाने का काम अपनी जान को जोखिम में डाल कर कर रहे है।

उनको थोड़ी राहत तब मिली थी , जब जानवरों की सहायता करने वाली ब्रिटेन की एक संस्था ब्रुक ने पाकिस्तान में बाढ़ से प्रभावित घोड़ों और गधों के लिए एक आपातकालीन सेवा शुरू की थी। इस संस्था का अनुमान है कि हाल की बाढ़ से करीब ७५००० घोड़े-गधे प्रभावित हुए है। बाढ़ के कारण वहाँ आज स्थिति यह है कि खेतों और घाटों के पानी में डूबने की वजह से किसानो और धोबियों ने इन्हें लावारिस छोड़ दिया है। जिसके कारण उन्हें हरी घास तक नसीब नहीं हो रही। खूंटे से बंधे होने के बावाजूद उन्हें ससम्मान चारा नहीं मिल रहा। जनसेवा का उचित फल नहीं मिलने और खुद को निम्न कोटि का करार दिए जाने पर वहां के गधे अपने को काफी लाचार और अपमानित महसूस कर रहे है।

उधर सुनने में आया है कि पाकिस्तानियों के इस अप्रत्याशित अभद्र व्यवहार से वहाँ के गधे सकते में है और साथ ही वे काफी नाराज और भड़के हुए भी है। "इन अहसान फरामोश भिखमंगों ने हमें कभी भी चैन से नहीं रहने दिया" यह कहते हुए अनेकों गधे सड़कों पर उतर आये है। कुछ गधों को वहा के भीड़-भाड़ वाले बाजार में तरह-तरह की बातें करते और अपने क्रोध का इजहार करते हुए पाया गया है।कुछ गधे बैनर भी लिए हुए थे जिस पर लिखा था ;
मैच देखने, खेलने के बहाने जाकर,
खुद तो बाड़े के सुख सहते हो,
मैच फिक्सिंग खुद करते हो,
उसपर गधा हमें कहते हो !
जिस दिन अपनी पर आयेंगे,
ढेंचू-ढेंचू चिल्लायेंगे !
दुलत्ती इतनी खाओगे,
कि गधा कहना ही भूल जाओगे !!
एक अत्यंत क्रोधित गधा तो यहाँ तक कह रहा था कि आने दो इन स्स्सा..... कप्तान सलमान बट्‍ट, मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद आमिर को वापिस पाकिस्तान, इनको तो मैं सबक सिखा कर ही दम लूंगा। ये लोग उलाहना तो हमारी जाति के मुहावरों से देते है कि गधे जैसी हरकते मत करो मगर खुद के व्यवहार पर तनिक भी गौर नहीं फरमाते।

Monday, August 30, 2010

भ्रष्टों और निक्कमों का प्रिय खेल बनकर रह गया है क्रिकेट !

कविता बनाने बैठा था, मगर वक्त और आत्मउत्साह की कमी के कारण सिर्फ चार ही लाईने बन पाई ;

किसने कब यह सोचा था, वक्त का ऐसा एक तकाजा होगा,
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।
महंगाई से त्रस्त होंगी प्रजा सारी, चांदी काटेंगे मंत्री, दरवारी,
राग अलापेंगे सब अपना-अपना, पर सिंहासन साझा होगा॥
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।...........................॥

हाँ , इस लेख के शीर्षक के मुताविक चंद बातें कहना चाहूँगा कि आज क्रिकेट का खेल एक भ्रष्टाचार की जननी बन चुका है। इस बात से अधिक उत्साहित होने की जरुरत नहीं कि आज इस खेल के गंदे हिस्से में कुछ पाकिस्तान के खिलाड़ियों के फंसने की ख़बरें है। सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि केवल पाकिस्तानी खिलाड़ी ही ऐसा काम कर रहे है। याद करे कि अभी आई पी एल पर यह खुले आरोप लगे है कि उसके भी सारे मैच पहले से फिक्स थे। तो क्या जो खेल फिक्स करके खेले गए तो क्या उसमे खेलने वाले खिलाड़ी पाक साफ़ थे ? इस खेल ने देश के सारे खेलों को निगल लिया है। दूसरे खेलों के खिलाड़ी जो देश के लिए खेलते है वे पाई-पाई को तरसते है और इस खेल के खिलाड़ी......? इस खेल में जो गंदगी फैल चुकी है इसकी वजह इसका अत्यधिक राजनीतिकरण भी है अत : यह उम्मीद करना कि इसे सुधारने के लिए कोई ठोस प्रयास होंगे, अपने को अँधेरे में रखने जैसा है। लेकिन आम जनता बहुत कुछ कर सकती है। अब यह आप सबके ऊपर है कि इस उबाऊ और निक्कम्मा बनाने वाले खेल को क्या आप आगे भी वैसा ही समर्थन देंगे, जो आज तक दिया ? वक्त आ गया है कि इस खेल के बारे में अपने माइंड सेट का फिर से गंभीरता के साथ अवलोकन करें !

Thursday, August 26, 2010

अर्थ-अनर्थ !
















छवि गूगल से साभार , कार्टून को बड़े आकर में देखने के लिए कृपया उस पर क्लिक करे !

Wednesday, August 18, 2010

ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर!




क्या कभी सोचा है तुमने इस सवाल पर,
क्यों आज ये देश है अपना, अपने ही हाल पर।
ढो रहा क्यों अशक्त शव अपना काँधे लिए,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

भ्रष्टाचार भरी आज यह सृष्ठि क्यों है,
कबूतरों के भेष में बाजो की कुदृष्ठि क्यों है।
'शेर-ए-जंगल' लिखा क्यों है गदहे की खाल पर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

महंगाई से निकलता दरिद्र का तेल क्यों है,
राष्ट्र धन से हो रहा फिर लूट का खेल क्यों है।  
शठ प्रसंन्न है आबरू वतन की उछाल कर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

Tuesday, August 17, 2010

क्या लिखू ?

लिखने को तो बहुत कुछ था, मगर
इस खिन्न मन की किन्ही गहराइयों से एक आवाज आ रही है कि लिखकर क्या करेगा ?
अपना खून जलाएगा , अपने आँखों की रोशनी कमजोर करेगा, अपनी उँगलियों को कष्ट देगा,
अपना बिजली का बिल बिठाएगा, अपने इन्टरनेट सर्विस प्रोवाईडर का घर भरेगा,
अपने कंप्यूटर के की बोर्ड को गुस्से में जोर-जोर से उँगलियों से पीटेगा, अपने घरवालों पर खीजेगा, इससे ज्यादा है भी क्या तेरे बस का ?

इसलिए रहने दे लल्लू , तेरे बस का कुछ नहीं ! लेकिन फिर
मेरी अंतरात्मा की गहराइयों से कुछ विरोध के स्वर फूटने लगते है, जो चीख-चीखकर मुझसे
ये कहते है कि गोदियाल, तू कबसे इतना स्वार्थी हो गया ?

तू कबसे सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगा ?
क्या यही तेरे उस तथाकथित स्वदेशप्रेम के नाटक का पटाक्षेप है, यदि हाँ, तो धिक्कार है तुझपर ! फिर तो डूब मर, कहीं चुल्लूभर पानी में !

इंतना कहने के बाद मेरी आत्मा मुझे यह कहकर धिक्कारने लगती है कि तू क्यों आया इस
संसार में ? तुझे तो पैदा ही नहीं होना चाहिए था! ये शब्द मुझे इसकदर भेदते है कि मै जोर से चीख उठता हूँ, लेकिन मेरी वह चीख कोई नहीं सुनता, सिर्फ कमरे की दीवारें कांपकर रह जाती है!
फिर पास रखे एक पानी के गिलास से कुछ घूँट गले में उड़ेल लेता हूँ! धीरे-धीरे जब नॉरमल होता हूँ तो मुझे याद आने लगता है कि स्वतंत्रता दिवस पर इस देश के कुछ किसान और जवान गोलिया खा रहे थे , कुछ असामाजिक तत्व देश की सम्पति को नुक्सान पहुंचा रहे थे! उसके बाद जैसा कि अक्सर होता आया है, कुछ मौक़ा परस्त राजनेता उन लाशों पर अपने और अपने परिवारों के लिए
संसद और विधान सभाओं में सीटे सुनिश्चित करने में लगे थे!

इनकी हरकते देख, मुझे वो आजादी का संग्राम याद आ रहा था! मैं सोच रहा था कि चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह , सुभाष चन्द्र बोष, इत्यादि जो
प्रत्यक्ष तौरपर सीने पर गोली खाने वाले असली बलिदानी थे, वे किस राजनैतिक पार्टी के थे ? किसी के नहीं, क्योंकि

वे इन राजनेताओं की तरह स्वार्थी नहीं थे, इसलिए प्राणों की आहुति दे दी , लेकिन कुछ
हरामखोर जो सिर्फ जनता को उकसाते थे, और खुद कही आड़ में छुप तमाशा देखते थे, आज तक नोट गिन रहे है!
वाह ! ऊपर वाले, क्या यही है तेरा इन्साफ ? इनको महामारी कब आयेगी ??????????????

अब आज की परिस्थितियाँ देखिये , जब गुजरात के अमित शाह को तो एक अपराधी की मौत के सिलसिले में गिरफदार करना था , तो इस देश और यहाँ के मीडिया को तो छोडिये , पडोशी मुल्क के कुत्ते, बिल्लियाँ , सुंवर, सियार और गीदड़ भी इकठ्टे होकर एक स्वर में बोले ! लेकिन जब २००८ के बैंगलोर बम धमाकों के आरोपी की बारी आई

तो कर्णाटक उच्च न्यायालय द्वारा माँगा गया मदनी केरल के नेताओ द्वारा बचाया जाने लगा,
सिर्फ वोट बैंक की दुहाई देकर ! तब इस देश के सारे कायदे क़ानून धरे के धरे रह गए ! एक भी गीदड़ नहीं रोया !

इन तथाकथित अल्पसंख्यकों की हिम्मत (जो दिनों-दिन बढ़ रही है )देखिये, इन्होने कल बरेली में जहा ये बहुतायात में है, कांवड़ ले जा रहे कुछ हिन्दुओं को इसलिए पत्थर मारकर भगा दिया क्योंकि वे इनके धार्मिक स्थल के सामने से लाउडस्पीकर लेकर जा रहे थे !
लेकिन इन अमन के दुश्मनों को कौन समझाए कि जब ये अपनी इबादत्गारों से
सुबह चार बजे ही लोगो की मीठी नींद हराम करते है, लाउडस्पीकर पर बाग़ देकर , तब इनका जमीर क्या घास चरने गया होता है ? आपको याद होगा कि कुछ महीनो पहले भी इस स्थान पर इन्होने किस सुनियोजित ढंग से दंगे-फसाद किये थे !

लेकिन पूछेगा कौन ? जिसे देखो उसे तो सिर्फ वोट की पडी है ! अमन चैन का पैगाम देना क्या हिन्दुओ का ही ठेका रह गया ? एक आदको छोड़ आज के किसी भी सेक्युलर खबरिया माध्यम ने इसे तबज्जो नहीं दी !

आज अगर आप गौर से देखो तो सिर्फ एक ही इंडस्ट्री फल-फूल रही है, और वह है,राजनीतक इंडस्ट्री ! बाकी सब मंदी के दौर से गुजर रहे है ! तो इसे पहचानिए, वरना मेरा तो यह मानना है कि जो हालात देश में बन रहे है आतंकवादीयो के हौंसले जिस कदर बुलंद हो रहे है, देश एक और विघटन की ओर अग्रसर है!
इसे हलके में मत लीजिये , १९२० तक सिर्फ दिखावे के लिए जिन्ना भी इस देश के सेक्युलरिज्म और कायदे-कानूनों की बात-बात पर दुहाई देता था, मगर २५ वर्ष के अंतराल में ही देश के तीन टुकड़े कर गया !

एक और मजेदार बात पहले कहना भूल गया, आजकल अमेरिका में ग्राउंड जीरो ( वह जगह जहा पर पहले ट्रेड टावर था ) मुस्लिम कम्युनिटी सेंटर और मस्जिद बनाने के प्रस्ताव से सेक्युलर देश अमेरिका में उबाल आ रखा है ! पहले तो यह कहूंगा कि इन इस्लाम के धर्मावलम्बियों को सिर्फ विवाद पैदा करने में मजा आता है, क्या अमेरिका के न्युयोर्क शहर में कोई और जगह नहीं थी मस्जिद बनाने के लिए जो यह लोग ०९/११ के पीड़ितों के जख्मो पर नमक छिड़कने में लगे है? यह इस बात को दर्शाता है कि ये लोग दूसरों को ठेस पहुंचाने में कितने आनंदित होते है ! दूर क्यों जाते हो, बाबरी मज्सिद का ही रोना देख लीजिये !

दूसरा ये कि इनकी इस्टाइल मुझे पसंद आई, I like it ya'r ! धर्मांध हो तो ऐसे , एक भाई ओसामा ने वहाँ बिल्डिंगे गिराकर जगह खाली करवाई और दूसरा भाई ओ** ३००० से अधिक लोगो की कब्र के ऊपर मस्जिद बनाने लगा है ! क्या बात है, मिसाल नहीं कोई दूसरी इस शान्ति के धर्म के भाई-चारे की दुनिया में ! वाह... वाह ... अरे सेक्युलरों कुछ सीखो इनसे !

Monday, August 16, 2010

मर्यादा का पालन !

राजनीति में मर्यादा का भी पालन होना चाहिए : मनमोहन सिंह




एक और !!

रहम करो माई बाप !
माया-ममता का पालन करते-करते
तो हम सड़क पर आ गए और आप है
कि.......!!!!

छवि गुगुल से साभार

Sunday, August 15, 2010

क्या सोचकर इस जश्न मे शरीक होवे?

जहां तक इन्सानों का सवाल है, मै समझता हू कि इस दुनिया मे भिन्न-भिन्न विचारधाराओं मे चार प्रकार का दृष्टिकोण रख्नने वाले लोग पाये जाते है, पहला आशावादी और दूसरा निराशावादी ( ये दोनो ही मिश्रित दृष्टिकोण वाले भी कहे जा सकते है ) तीसरा होता है घोर आशावादी और चौथा घोर निराशावादी। घोर आशावादी और घोर निराशावादी इन्सान आप शेयर मार्केट के उन तेजडियों और मंदडियों को कह सकते है, जो बाजार मे विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी शेयरों से इसी उम्मीद पर खेलते है कि आज मार्केट चढेगा अथवा उतरेगा। यह कतई मत सोचिये कि मै आप लोगो को लेक्चर दे रहा हू, बस यूं समझिये कि भूमिका बंधा रहा हू। मालूम नही लोग इस लेख को पढ्कर मुझे उपरोक्त मे से किस श्रेणी मे रखते है लेकिन इतना जरूर कहुंगा कि वर्तमान परिस्थितियों मे मुझे तो दूर-दूर तक अपने इस दृष्टिकोण मे बद्लाव के लिये आशा की कोई किरण नजर नही आ रही।

जैसा कि आप सभी जानते है कि देश आज प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति की चौसठ्वी वर्षगाठ मना रहा है, यानि कहने को स्वराज मिले हुए त्रेसठ साल पूरे हो गये। लेकिन यहां के आम जन से मै कहुंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर पूछे कि क्या हम सचमुच मे आजाद है? क्या इसी रामराज के लिये अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियो ने अपने तन, मन, धन की आहुति दी थी? क्या वर्तमान हालातों को देखकर आपको नही लगता कि आजादी सिर्फ़ उन कुछ चाटुकारों को मिली जिनके पुरखों ने पहले मंगोलो और मुगल आक्रमणकारी लुटेरों के तलवे चाटे, फिर अंग्रेजो की सेवा भक्ति मे अपना जीवन धन्य बनाया और आज कुर्सी के लिये किसी भी हद तक गिरकर सत्ता हथिया ली है?क्या आजादी सिर उनको नही मिली जो पहले काले कपडे पहनकर रात को लोगो के घरों मे सेंध लगा कर माल लूटते थे, अत्याचार करते थे और आज वे सफ़ेद पोशाकों मे खुले-आम लोकतंत्र की दुहाई देकर रौब से कर रहे है? क्या सही मायने मे आजादी उन मुसलमानों को नही मिली जो इस देश का एक बडा भू-भाग भी ले गये और आज तक हमारी छातियों मे मूंग दल रहे है? क्या आजादी उन मलाई खाने वाले आरक्षियों को नही मिली जो हमारा और हमारे बच्चो का इस बिनाह पर हक मार रहे है कि उनके पूर्वजों का हमारे पूर्वजों ने शोषण किया था, इसलिये वो आजादी का नाजायज फायदा ऊठाकर हमसे न सिर्फ़ बद्ला ले रहे है, बल्कि अकुशल और अक्षम होने के बावजूद भी उच्च पदों पर बैठकर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार पैला रहे है अपितु अकुशलता की वजह से इस देश की परियोजनाओं की ऐसी-तैसी कर देश के आधारभूत ढांचे के लिये भविष्य के लिये खतरे के बीज बो रहे है?

देश प्रत्यक्षतौर पर आजाद हुआ, मगर हमे इससे क्या मिला? उल्टे हमारे समान रूप से जीने के अधिकारों को छीना जा रहा है। सत्ता पर काविज चोर-उच्चके दोनो हाथो से हमारी मेहनत की कमाई के टैक्स की रकम को लूटकर विदेशो मे उन्ही अंग्रेजो के बैंको मे उनके ऐशो आराम के लिये पहुंचा रहे है, जिनसे मिली आजादी का जश्न हम मना रहे है। इतनी आजादी तो हमारे पास अग्रेंजो के दौर मे भी थी, बल्कि यो कहे कि उन्होने सिर्फ़ वहा लोगो का दमन किया, जहां लोगो से उन्हे उनके एकछत्र राज को चुनौती मिली, अन्यथा तो मै समझता हू कि उन्होने किसी की व्यक्तिगत आजादी मे कोई हस्त:क्षेप नही किया। कानून व्यवस्था भी एकदम दुरस्थ रखी। जो लोग ये तर्क देते है कि उन्होने हमारे बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, उनसे पूछ्ना चाहुंगा कि इस आजाद देश मे आज और भला क्या हो रहा है? हो सकता है कि बहुत से लोग मेरी उपरोक्त कही हुई बातों से इत्तेफाक न रखे मगर सच्चाई दुर्भाग्यबश यही है। और यह भी नही है कि इस आजदी से देश के किसी भी गरीब तबके को लाभ मिल रहा हो, बस फायदा वही उठा रहे है जो येन-केन प्रकारेण इस तथाकथित आजादी का फायदा उठाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते है। मैने ऊपर प्रत्यक्ष आजादी शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि कटुसत्य यह है कि अप्रत्यक्ष तौर पर हम आज भी ऐलिजाबेथ के ही गुलाम है। वो जो कुछ लोग तर्क देते है कि भले लोगो को आगे आकर इस देश की बागडोर सम्भालनी चाहिये, उनसे यही कहुंगा कि भले लोगो को इस देश के वोटर क्या सचमुच प्राथमिकता देते है? और दूसरा यह कि इन हालात मे सता तक पहुंचने के लिये कोइ भी ईमान्दार इन्सान उस हद तक नही गिर सकता, जिस हद तक ये आज के ज्यादातर पोलीटीशियन गिरते है।

और हमारे युवा वर्ग को समझना होगा कि दुर्भाग्य बश हमारे देश का यह लम्बा इतिहास रहा है कि इसे बार-बार गुलामियों का दर्द झेलना पडा, और आज जो हालात बनते जा रहे है वो हमे एक और प्रत्यक्ष गुलामी की ओर धकेल सकते है। आज के युवा-वर्ग को समझना होगा कि भ्रष्ठाचार और दगाबाजी हम हिन्दुस्तानियों के खून मे है, जिसे प्युरिफ़ाई करने की सख्त जरुरत है। जब हम लोग देश मे कुछ गलत होता देखते, सुनते है तो तुरन्त यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन नही यह तर्क भी सरासर गलत है। आपने देखा होगा कि हाल ही मे हमारे उच्च शिक्षित लोगो जैसे थरूर, कौमन वेल्थ के दरवारी इत्यादी ( लम्बी लिस्ट है) ने भी हमे निराश ही किया है। आप देखिये कि आज जब हम किसी विमान मे यात्रा कर रहे होते है तो यह मान कर चलिये कि उसमे से १००% लोग उच्च शिक्षित होते है, कितने लोग विमान परिचालकों के निर्देश का ईमान्दारी से पालन करते है ? आये दिन सड्को पर शराब पीकर रस ड्राईविग और उसके बाद के ड्रामे के हमारे युवा वर्ग के किस्से आम नजर आते है। खैर,बहुत देर होने से पहले आशा और उम्मीद की कुछ किरणें अभी भी बाकी है, उम्मीद यही रखता हूं कि शायद नई भोर आ जाये ! तब तक
आप सभी को भी इस आजादी की वर्षगांठ की हार्दिक शुभ-कामनाये!
मेरे वतन के लोगो !

चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !

भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !

पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !

ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!

गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
त्याग करना भी सीखो, हरदम न लाभार्थी बनो !

वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!
जय हिंद !

Saturday, August 14, 2010

ब्लैकबेरी बनाम स्विस बैंक !


इसमे कोई सन्देह नही कि देश की आन्तरिक और सामरिक सुरक्षा के नज़रिये से ब्लैकबेरी सेलफोन प्रकरण अनेक देशों की सुरक्षा एजेंसियों के लिये एक संवेदनशील और चिन्ताजनक विषय बन गया है। और दुश्मन देश की गुप्तचर एजेंसिया और बुरे मंसूबे वाले आतंकवादी संगठन और लोग निश्चिततौर पर इसका गलत इस्तेमाल कर सकते है। भारत ही नही बल्कि विश्व के अनेक देशों जैसे चीन, अल्जीरिया, य़ूएई, सऊदी अरब, लेबनान और बहरीन ने भी इस बारे मे कदम उठाने शुरु कर दिये है। देश की सुरक्षा चिन्ताओं के प्रति हमारी अत्यधिक सजग सरकार ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए दूरसंचार प्रदाताओं और ब्लैकबेरी की निर्माता कम्पनी रिसर्च इन मोशन (रिम) को नोटिस दिया था कि अगर सुरक्षा एजेन्सियों को ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्विसेज और ब्लैकबेरी मेसेंजर सर्विसेज तक पहुंच नही मुहैया कराई गई तो ३१ अगस्त तक ब्लैकबेरी की सेवायें बंद कर दी जायेंगी। मरता क्या नही करता वाली कहावत के हिसाब से शुरुआती ना-नुकुर के बाद ब्लैकबेरी ने सरकार की बात मान ली है। मानेंगे भी क्यों नही धंधा जो करना है। और देश की सुरक्षा के लिहाज से इसके उपभोक्ताओं को भी यह बात भली प्रकार से समझ आती है। हां, जहां तक भारत का सवाल है, मैं कल पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित दैनिक की वेब-साइट पर इसी से सम्बंधित एक लेख पढ रहा था, जिससे यह स्पष्ठ होता है कि इस बात से कुछ पाकिस्तानियों के पेट मे दर्द उठने लगा है कि भारत शर्ते न मानने पर ब्लैक बेरी की सेवायें रोक सकता है।

इस बात से एक और चीज स्पष्ठ होती है कि सरकार अगर दृढ इच्छा शक्ति रखती हो तो बहुत कुछ कर सकती है। लेकिन अफ़सोस कि हमारे ये तथाकथित “सजग”सरकारों के नुमाइंदे अपने निहित स्वार्थो के चलते वहां रजाई ओढकर सो जाते है, जहां इन्हे वास्तव मे अति सजगता दिखानी चहिये थी। मुझे यह देखकर हैरानी और आश्चर्य होता है कि एक अदना सा हराम की कमाई खाने वाला देश, स्विटजरलैण्ड ( यह देश भारत के भी तकरीबन ८० लाख करोड रुपयों के ऊपर कुंड्ली मार के बैठा है, और ब्याज की कमाई पर खूब ऐश कर रहा है) पिछ्ली तकरीबन एक सदी से पूरे विश्व मे आर्थिक आतंकवाद फैलाये हुए है, यह दुनिया मे भ्रष्ठाचार का जन्मदाता और मुख्य स्रोत है, और जिसके हाई-प्रोफाइल आतंकवादी समूची दुनिया मे फैले है। यह देश ओसामा बिन लादेन से भी कई गुना बडा अपराधी है, और इसके पाले हुए ये आर्थिक अपराधी अल-कायदा से भी कई गुना अधिक खतरनाक है, क्योंकि ये लोग उस प्रक्रिया से धन चुराते है जिसमे देश की तमाम जनता का हित निहित होता है। और इनकी कारगुजारियों का खामियाजा असंख्य लोगो को आगे चलकर अपनी जान देकर चुकाना पडता है। मसलन यदि कहीं पर किसी नदि का एक तटबन्द घटिया सामग्री से बनाकर उच्च पदस्थ लोग बजट का वास्त्विक पैसा घोटाला करके स्विस बैंक मे जमा कर दे, और आगे चलकर वह तटबंद बरसात में टूटकर पूरा गाँव ही बहा ले जाए तो यह कृत्य किसी भी आतंकवादी हमले से कहीं बढकर है, जिसे लोग मात्र एक दैवीय विपदा मानकर भूल जाते है।

भेद-भाव की हद देखिये कि खुद को दुनिया का थानेदार बताने वला यह तथाकथित सभ्य देश, अमेरिका १९४५ मे द्वितीय विश्व युद्ध के दर्मियान, जापान को दुनियां के लिये खतरा बताकर उसके दो शहरों के असंख्य निर्दोष नागरिकों को परमाणु बम गिराकर मौत की नींद सुला देता है। ०९/११ के बाद से अब तक इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को दुनिया के लिये खतरा बताकर असंख्य इराकियों को मौत की नींद सुला चुका है। लेकिन एक यह देश स्वीटजलैंड, जो दुनियां के अरबों लोगो का गुनाह्गार है, जो कि हिरोशिमा और नागासाकी के बजाय परमाणु बम का स्वाद चख्नने का ज्यादा हकदार था, जिसकी हुकूमत सद्दाम हुसैन से ज्यादा इस दुनिया के लिये खतरनाक है, और सद्दाम के साथ किये गये भी बुरे वर्ताव से अधिक की हकदार है,क्योंकि यह देश अप्रत्यक्ष तौर पर भ्रष्ट और गद्दार लोगो को गद्दारी और चोरी के लिए प्रोत्साहित करता है, उसके बारे मे दुनिया का कोइ भी देश कुछ नही बोलता है। और वह देश व्यक्तिगत आजादी और गोपनीयता की दुहाई देकर नैतिकता और इमानदारी को धत्ता दिखाकर दुनियां मे भ्रष्ठाचार और दुराचार को खुले-आम बढावा देकर, लूटे गये धन को अपने देश मे रखवाकर, उस धन से अपनी समृद्धि का डंका पीट रहा है। जरा सोचिये कि अपने देश मे यदि गलती से भी कोई सुनार / जवैलर किसी लुटेरे से लूटे हुए आभूषण भी खरीद ले तो उसे भी सख्त सजा दी जाती है, लेकिन स्विस बैंक के बारे मे कुछ बोलने की किसी मे जरा भी नैतिक्ता नही बची।जबकि यह देश हमारे राष्ट्रीय हितो के लिए ब्लैकबेरी से कहीं अधिक खतरनाक है।

Thursday, August 12, 2010

मनमोहन सिंह जी की जय बोलिए क्योंकि वे भी आज २२७३ दिन के प्रधानमंत्री हो गए !


आज जब एक दैनिक अंगरेजी अखबार की वेब-साईट पर उसकी न्यूज हेडिंग पर नजर गई तो पता चला कि मनमोहनसिंह जी इस देश के प्रधानमन्त्री की कुर्सी को लम्बे समय तक सुशोभित करने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गए है ! नि:संदेह उनकी काबिलियत पर कोई शक नहीं किया जा सकता, मगर हर जगह इतनी अनिश्चितता के वातावरण में उस साईट का इस बात पर उत्साहित होना भी जायज ही है!

उनके बारे में मेरा यह अपना आंकलन रहा है कि श्री मनमोहन सिंह जी के साथ अक्सर हर चीज "अति" वाली सीमा तक रही है! वे अति की सीमा तक साफ़ छवि वाले ऐंसे ईमानदार व्यक्ति है, जिन्हें अपने नेतृत्व के अधीन हो रहे तमाम भ्रष्टाचारों में से कोई एक भी भ्रष्ट कृत्य अथवा घोटाला नजर नहीं आता है! वे एक बड़े अर्थशास्त्री भी है ! और सुनने में आया है कि दुनिया के कई बड़े देशों के नेतावों ने कुछ समय पहले कनाडा में संपन्न अन्तराष्ट्रीय बैठक में उनकी इस बात के लिए जमकर तारीफ़ भी की कि उन्होंने तरह-तरह के टैक्स अपनी जनता पर लगाकर अन्तराष्ट्रीय मंदी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया! अब यह पता नहीं कि उनका यह मंदी के साथ अर्थशास्त्रीय मुकाबला था, अथवा इस देश के करोड़ों लोगो का अपने भूखे पेट पर नियत्रण रखने की क्षमता, जो लाखों टन अनाज मंडियों में सड़ता रहा, मगर लोग आईपीएल देखकर ही अपना वक्त गुजारते रहे ! और एक अच्छे अर्थशास्त्री के नाते उन्होंने जनता के दुःख दर्द को समझकर आगे भी कॉमनवेल्थ का खेल दिखाने का पक्का इंतजाम करा लिया है ! सरकारी महकमे और खेल समिति द्वारा जो करोड़ों का चूना देश की जनता के माथे पर उनके द्वारा दिए गए टैक्स की रकम का लगा है, उसकी क्षतिपूर्ति भी ये आगे चलकर इसी जनता पर और टैक्स लगाकर वसूलने वाले है ( क्या पता मृत्यु पर भी सर्विस टैक्स लग जाए, ज़िंदा अवस्था वाली तो कोई एक ऐसी चीज नहीं छोडी जिसपर कि सेवा कर न लगा दिया हो ) !मैं तो ये कहूंगा कि उनकी तारीफ़ में जिस किसी देश ने भी कसीदे कसे, भगवान् करे उनको भी इनके जैसा कोई अर्थशास्त्री शीघ्र मिले ताकि उनका भी यथाशीघ्र उद्धार हो !


हालांकि यह चित्र इस देश की भर्मित तस्वीर पेश कर रहा है, मगर अमेरिकियों और यूरोपीय लोगो की माने तो भारत एक नई शक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है ! हम भी इसी आश में बैठे है कि हमारा देश जल्द से जल्द दुनिया की जानी-मानी शक्ति बनकर उभरे,लेकिन जब तक पूरा उभरता है,तब तक श्री मनमोहन सिंह जी को उनकी इस उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई !

Sunday, August 8, 2010

आस्था ही सड्क पर न आ जाये, इसका भी ध्यान रखे !


अब जब श्रावण मास अपने अंतिम चरण मे पहुंच गया तो अब जाकर उत्तर भारत के खासकर चार राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के बहुत से लोगो की जान मे जान आई है। हर साल की भांति इस साल भी सड्कों पर कांवड़ियों का हुजूम उमडा। पूरे श्रावण माह कांवड़िये उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धूम मचाये रहते हैं। दूर-दूर से ये हरिद्वार आते हैं, और यहां से गंगाजल लेकर इच्छित शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। यहां तक कि ये कांवड़िये अब गंगोत्री और गौमुख तक जाने लगे हैं। इनका दायरा अब राज्य स्तर तक पहुंच रहा है। जिसके लिये सम्बद्ध राज्य सरकार और प्रशासन को एक महिने पहले से युद्ध-स्तर पर तैयारियां शुरू करनी पडती हैं।

चुंकि यह करोडों हिन्दुओं की अस्था से जुडा मसला है इसलिए भावनाऒं का आदर भी नि:सन्देह जरूरी है। मगर साथ ही हमे यह भी देखना होगा कि कहीं कोई चीज अत्याधिक तो नही हो रही? भग्वान शिव के प्रति जनता के मन मे जो आदर और आस्था है, हमारे कृत्य कहीं उसे कोई चोट तो नही पहुचा रहे ? क्योंकि पिछले आठ-दस सालों से जबसे हमारे इस देश की दोयम दर्जे की राजनीति ने आस्था के इस क्षेत्र मे अपनी घुसपैठ बनाई है, यह देखा जा रहा है कि इस प्रदेश/ क्षेत्र का आम निवासी अपने को विचलित/बेआराम मह्सूस करने लगा है। हिन्दू धर्म से जुडे किसी भी आस्थावान व्यक्ति को शायद ही यह बताने की जरुरत पडे कि इस धर्म के मूल सिद्धान्तों मे से एक प्रमुख सिद्धान्त यह भी है कि हम अपनी धार्मिक प्रथाओं और कार्यों का निष्पादन करते वक्त किसी दूसरे को कष्ठ न तो पहुंचाये और न ही होने दे। अन्यथा वह निष्पादित धार्मिक कार्य सफ़ल नही माना जाता।

आज के हालात मे यह भी एक सच्चाई है कि तेजी से बढ्ती जनसंख्या और सडक यातायात पर बढ्ते वाहनो के दबाव के आगे हमारे ढांचागत साधन बौने साबित हो रहे है। इन ढांचागत साधनों की भी अपनी कुछ सीमाए है, जिनके भीतर ही रहकर हमें इनका इस्तेमाल करना है। मसलन किसी सड्क को हम सिर्फ़ एक सीमा तक ही चौडा कर सकते है,उससे आगे नही। और जिस तरह से कुछ लोग धर्मान्धता,अन्धविश्वास और भावनात्मक उन्माद मे बहकर सिर्फ़ गंगाजल लाने के लिये अपनी और स्थानीय लोग की जान खतरे मे डालकर गंगोत्री और गौ-मुख तक सड्कों पर "कांवड-हुड्दंगता" मचाने लगे है, वह सरासर गलत है। एवंम जिसका खामियाजा अभी खुछ रोज पहले सारे नियम कानून ताक पर रखकर रात को ( पहाडो मे रात को सड्क पर गाडी चलाने की मनाही होती है) ट्रक से गंगोत्री जा रहे करीब २५ कांवडियों को अपनी जान गवांकर चुकाना पडा।


(छवि गुगुल से साभार)






संविधान के हिसाब से इस देश मे हर नागरिक को अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार है, और हमे निष्ठा से अपने इस अधिकार का उपयोग भी करना चाहिये। मगर साथ ही मै सरकार और इन शिव भक्त कांवडो से यह गुजारिश भी करुंगा कि वे जनता की परेशानियों का भी ध्यान रखे। मुझे याद है कि १०-१२ साल पहले तक भी इस क्षेत्र मे हर साल कांवड चलती थी, लेकिन कभी किसी को कोई दिक्कत नही हुई। ये भी नही है कि अभी कुछ सालों मे ही आवादी बढी हो, हां बढे है तो सड्कों पर वाहन, राजनैतिक हस्त:क्षेप, बेरोजगार और हुडदंगी, जो ये सोचते है कांवड के नाम पर सडकों पर हमारी खूब आवाभगत होती है इसलिये डिवाईडर के दोनो ओर के सडक पर जंहा मर्जी हो, वहां बेधडक चलकर अपना हुडदग दिखायें। बढे है तो वे पैसे वाले जो ये समझते है कि हर चार कदम पर बीच सडक पर कही भी टेन्ट गाढकर फ्री मे पुण्य कमाया जाये, मानो सडक इनके बा**..................। ये भी ध्यान रखे कि दूसरों को कष्ठ देकर आपको पुण्य प्राप्त हो जाये, यह नामुम्किन सा लगता है। दो-दो करके अगर भक्त कांवड लोग अपने गनतव्य पर निकलें तो किसी को भला क्या दिक्कत हो सकती है? गांवो से सीमित मात्रा मे ही युवा कांवड को निकले, यह नही कि पूरा का पूरा गांव ही कावड लेने निकल पडे। आजकल देखा यह जा रहा है कि अनेक असामाजिक तत्व अपने गंदे मंसूबे लेकर इस आस्था को बदनाम करने पर भी आमादा है। सरकार को चाहिये कि वह रास्ते मे कांवड के लिये मुहैया कराई जाने वाली खान-पान की व्यवस्था को अपने हाथ मे ले।

यहां एक बात और कहना चाहुंगा कि अन्धविश्वास के आगे हम अन्विज्ञं लोग अपने कृत्यों से किसी धार्मिक अनुष्ठान की जड पर ही प्रहार कर देते है। हालांकि मुझे इस बात का ज्यादा ज्ञान नही है कि जलाभिषेक के दिन शिव भग्वान के दरवार मे कांवड के द्वारा सिर्फ़ गंगाजल ही चढाया जाता है अथवा वह कोई भी जल चढा सकता है। ध्यान रहे कि मैं यहां पर बात सिर्फ़ कांवड की ही कर रहा हूं। अगर जो तो धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों मे यह कहा गया है कि सिर्फ़ गंगाजल ही मान्य है तो मैं समझता हूं कि जो कांवड गंगोत्री जाकर जल ला रहे है, वो बहुत बडी भूल कर रहे है। क्योंकि वे भग्वान शिव को गंगाजल नही, भागीरथी जल अर्पित कर रहे है। क्योंकि गंगा का वास्तविक उदगम देवप्रयाग मे भागीरथी और अलकनन्दा के मिलन से हुआ माना जाता है, न की गंगोत्री अथवा गौ-मुख से। इसीलिये पुराणों मे चढावे के लिये हरिद्वार, ऋषिकेश से ग्रहित किये गए जल की ही वास्तविक गंगाजल की मान्यता है।

Saturday, August 7, 2010

ये अहसान फरामोश भिखमंगे !

मेरा मानना है कि विपदा में फंसा हर प्राणी सबसे असहाय होता है, और हमने जहां तक इस भारत भूमि का इतिहास है, अपने पूर्वजों के मुख से, अपने पौराणिक गर्न्थों में, अपने संस्कारों में यही पाया है, यही पढ़ा है कि इंसान तो छोडिये, विपदा में फंसे प्राणी की पशु-पक्षी भी मदद करते है! किस्से-कहानियों में अक्सर जाल में फंसे शेर और चूहे की कहानी, डूबती चींटी और चिड़िया जैसी अनेकों कहानिया तो आपने भी पढी होंगी ! मानवता के नाते एक विवेकशील इंसान का यही परमधर्म होता है कि अपनी काविलियत के हिसाब से, मुसीबत में फसे जरूरतमंद की यथोचित मदद करे! यही इंसानियत का सार है,और यह भी कह लीजिये कि एक सच्चा धर्म भी यही है! और मैं यह भी खूब समझता हूँ कि शायद उससे बढ़कर और कोई बेरहम इंसान इस दुनिया में नहीं सकता , जो दो शब्द सम्वेदना और सहानुभूति के न कहकर, पीड़ितों का उपहास उडाये !


अपना एक पड़ोसी मुल्क है पाकिस्तान ! घृणा से परिपूर्ण देश (फुल ऑफ़ हेट )! कुछ हमारे मित्र जो यह कहकर कि पाकिस्तानियों को छोडिये, उनसे हमें क्या लेना, उनसे पल्ला झाड़ने की बाह्यमन से कोशिश तो करते है, मगर साथ ही यह भी जानते है कि आज भी अधिकाँश पाकिस्तानियों के नाते-रिश्तेदार हमारे बीच है ! मैं उन्हें यह भी बता दूं कि ये पाकिस्तानी वाशिंदे कहीं किसी दूसरी दुनिया से टपककर नहीं आये, बल्कि हमारे ही भाईबंद है! वो भाईबंद जिनमे से अधिकाँश जैचंद के डीएनए से गर्सित, स्वार्थ और लालच के मारे और कुछ मजबूरी बस हमारी पीठ पर छुरा घोंपकर हमसे अलग हो गए ! घृणा की इनकी हद देखिये कि वे आज भी हमें अपना दुश्मन नंबर एक और अलकायदा, तालिबानियों को अपना दोस्त समझते है! लेकिन पिछले अनेक सालों से बहुत ही बुरे हालातों से गुजर रहे है! अभी तो ये हाल है कि लोग बाढ़ की वजह से कई दिनों से भूखे है, पशुओं की तरह कहीं इधर-उधर रात गुजारने को मजबूर है, बारिश में सर छुपाने को इनके लिए ख़ास कोई सार्वजनिक छत भी उपलब्ध नहीं है! हमने भी साल दो साल पहले कोसी की मार झेली थी ! इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि हम लोग उनसे कोई बहुत बेहतर है किन्तु इतना जरूर कहूंगा कि हम उनसे बेहतर ढंग से अपने ही संसाधनो के जरिये इस राष्ट्रीय विपदा से निपटने में सक्षम रहे!



खैर, प्रकृति के आगे सब बेवश है, और मैं भगवान् से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभो ! पीड़ित लोगो को उनके दुखों को सहने की क्षमता प्रदान करे, उनतक जल्द-से जल्द मदद पहुचे, और वे अपने उजड़े घरों को फिर से बसा सकें ! लेकिन अब मैं इस विषय से हटकर इस लेख के शीर्षक पर संक्षेप में कुछ कहूंगा ! साथ ही यह बात मैं उन मित्रों को भी कहूंगा जो इस बात पर ऐतराज करते है कि उनके धर्म की तुलना अमरीकियों के धर्म से की जा रही है! कुछ विद्वान अपने धर्म के बारे में बड़ी- बड़ी हांकते है कि सबसे तेज धर्म है, सबसे ज्यादा धर्मावलम्बी उनके धर्म के है.... ब्लाह... ब्लाह ....! मेरा एक साधारण सा सवाल ; १४०० साल पुराना, सबसे तेज और सर्वाधिक धर्मावलम्बियों के बावजूद इनके आम इंसान की ये दुर्गति कि अलाह का पूरा आशीर्वाद होते हुए भी खुद की हिफाजत करने में अक्षम ? उसकी दी हुई भीख पर ही आखिरकार निर्भर ,जिसके समूल विनाश की दिन-रात अल्लाह से प्राथना करता है ? और उस काफिर की सद्भावना देखिये ( चाहे वह यह सब अपने फायदे की बात सोच कर ही क्यों न कर रहा हों, मगर खा तो उसी का रहे हो न ) अपनी क्या औकात है सिवाए मानव बम फोड़ने के ? Flood relief flights grounded in Pakistan
:U.S. begins flood relief missions in Pakistan . Pakistan floods affect 12 million people: Stormy weather grounded helicopters carrying emergency supplies to Pakistan's flood-ravaged northwest Friday as the worst monsoon rains in decades brought more destruction to a nation already reeling from Islamist violence.
U.S. military personnel waiting to fly Chinooks to the upper reaches of the hard-hit Swat Valley were frustrated by the storms, which dumped more rain on a region where many thousands are living in tents or crammed into public buildings.

इन अहसान फरामोशों की घृणा की हद देखिये ; यह अभागा पाकिस्तानी नागरिक , प्रेमचंद , जो उस प्लाईट संख्या २०२ में सवार था जिसके सभी १५२ यात्री इस्लामाबाद के करीब एक पहाडी पर हमेशा के लिए स्वाह हो गए ! जब इस अभागे प्रेमचंद की अर्थियां इसके परिवार को सौंपी गई तो उसके ताबूत पर लिखा था " काफिर " ! इन हरामखोरों को इतनी भी इंसानियत का ख्याल नहीं रहा, कि कम से कम एक मृतक के साथ तो अच्छा सुलूक करें, उसके ताबूत पर काफिर लिखने की बजाये उसका नाम लिख देते तो क्या इनका कुछ घिस जाता ? और उसके बाद इन कमीनो की सफाई देखिये " उसके ताबूत पर इसलिए काफिर लिखा गया ताकि कोई उसे मुस्लिम समझकर इस्लाम के हिसाब से उसका अंतिम संस्कार न करे !" उस फ्लाईट में एक और हिन्दू डाक्टर सुरेश भी सवार था, उसके कौफिन के साथ क्या सलूक हुआ, नहीं मालूम !

इस तस्वीर को देखिये , यह नहीं है कि इन्होने गलती से भारत के ध्वज को उलटा टांगा है, बल्कि सच्चाई यह है कि ये हरामखोर, अहसान फरामोश, भले इंसान भी बनना चाहते है, मगर हमारी कीमत पर ! ये भारत के ध्वज को उलटा टांग सकते है, क्योंकि हरा इस्लाम का द्योतक है, इसलिए उसे ऊपर रखना चाहते है ! ! ha-ha-ha ....!






हिन्दुस्तान में बैठे ये हमारे कुछ मुस्लिम भाईबंद हम तथाकथित उच्च जाति के हिन्दुओं को समय-समय पर यह अहसास दिलाते है कि हमारे पूर्वजों ने दलितों के साथ क्या किया ! इन्हें शायद यह अहसास कराने की जरुरत नहीं कि उस समय यह सब निर्धारण इंसान के कर्मो के हिसाब से किया जाता था ! उदाहरण के लिए, आज इनकी तार्किकता के आधार पर एक सजायाफ्ता मुजरिम, मान लीजिये कसाब ! और थोड़ी देर के लिए यह भी मान लीजिये कि कसाब की शादी हो रखी है और उसका एक बेटा भी है ! कल अगर कसाब का बेटा कहने लगे कि मेरे बाप को क्यों सजा दी गई इंसानियत के नाते, तो क्या उसके तर्क को सही मान लिया जाए ?( यह भी कहूंगा कि उसमे कुछ अपवाद भी अवश्य शामिल है ) अभी तो शिक्षित होते इंसान ने यह सब त्याग दिया है न , लेकिन क्या आपके धर्मावलम्बियों ने इसे त्यागा है ? इस अहमदिया सम्प्रदाय के इंसान की मजबूरी पर एक नजर डालिए, जिसके सगे सम्बन्धियों को अल्लाह के वन्दों ने मौत के घाट उतार दिया ;

शायद लंबा लेख हो गया, जो मैं हिन्दुस्तान के परिपेक्ष में कदापि नहीं पसंद करता ! इसलिए इसे ख़त्म करते हुए यही कहूंगा कि बजाये अपनी शक्ति को विनाश पर लगाने के इंसान के विकास पर लगाइए ! गुरूर भी उस इंसान का ही वर्दास्त किया जाता है, जो खुद में कुछ हो ! Beggars can't be a chooser !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पाकिस्तान में अमेरिकी राहत सामग्री लेने के लिए कतार में खड़े बाढ़ पीड़ित !


नोट: इस लेख का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कुछ हिन्दुस्तानी सुधर जाएँ !!!!!


प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।