Saturday, May 8, 2010

एक गजल- सहमे गुल



तज पुरा-रीतियां ज़माना निकला,नए-नए अभियानों पर,
बदल गई है अब दुनिया, सभ्यता के दरमियानों पर ॥

न स्वयम्बर की दरकार रही 
अब, न युवराजों की जंग,
जंक खाती जा रही तलवारें भी ,पडे-पडे मयानों पर ॥

क्या पूनम,क्या अमावस,क्या शुक्ल क्या कृष्ण पक्ष,
सूरज ग्रहण लगा रहे है नित,चांद के आशियानों पर ॥


उत्कंठा के चरम,उजाड़ रहा खुद माली ही गुलशन को ,
गुल सहमा ऐतवार करे कैसे,गुलशन के सयानों पर॥

काबिले भरोसा रहा न कोई,'परचेत' यक़ी करे किस पर,
यहां लोग भरोसा करते भी है तो गिरगिट के बयानों पर ॥

17 comments:

  1. waise mujhe bhi bahut dukh hai jo kuch bhi hua...lekin agar ye hamari beti ne kiya hota to kya karte...bas ek masoom sa prashn hai...

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  2. Dukhad ghatnaa hai ......

    सबूत मिटा डाले उसी ने, जिस पर दारोमदार था ।
    मुकदमा दर्ज हुआ भी तो, गिरगिट के बयानों पर ॥

    antim lines bahut sashakt hai

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  3. सबूत मिटा डाले उसी ने, जिस पर दारोमदार था ।
    मुकदमा दर्ज हुआ भी तो, गिरगिट के बयानों पर. satay hai.nice

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  4. अजी हो सकता है किसी ने कुछ भी ना किया हो उसी लडकी ने आत्महत्या की हो , मां बाप के डांटने के बाद या किसी अन्य कारण से.बिना सबुत क्यो किसी को दोषी कहे

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  5. बहुत सुन्दर रचना है ... खास कर ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
    सबूत मिटा डाले उसी ने, जिस पर दारोमदार था ।
    मुकदमा दर्ज हुआ भी तो, गिरगिट के बयानों पर ॥

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  6. न स्वयम्बर की दरकार रही, न युवराजों की जंग ।
    जंक खाती जा रही तलवारें ,पडे-पडे मयानों पर ॥

    विसकुल सही बात कही है आपने

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  7. बहुत ही सशक्त और सटीक अभिव्यक्ति गोदियाल जी । और अंतिम पंक्तियां तो कहर ढा रही हैं

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  8. पता नहीं, लेकिन दुखद तो अवश्य है..

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  9. अच्छी गजल ,दुखद है सब कुछ ।

    और हां सुमन जी NICE के अलावा भी कुछ लिखते हैं ।

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  10. सुन्दर रचना!
    मातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
    ममतामयी माँ को प्रणाम!

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  11. सबूत मिटा डाले उसी ने, जिस पर दारोमदार था ।
    मुकदमा दर्ज हुआ भी तो, गिरगिट के बयानों पर ॥


    वेदनायुक्त ग़ज़ल..

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  12. मुकदमा दर्ज हुआ भी तो, गिरगिट के बयानों पर ..

    देश का माहॉल आज ऐसा ही है .... देश का सत्यानाश कर रहे हैं ये राजनेता ...

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  13. बेहद सटीकता से बात कह दी आपने.

    रामराम.

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  14. बहुत ही उम्दा और सटीक सोच से निकली अभिव्यक्ति /

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।